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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® राजा गुणसेन और अग्नि शर्मा तापस प. पू. कीर्तियशसूरिजी म. “साधू संत के प्रति उचित आचरण" में से राजकुमार गुणसेन ने अग्नि शर्मा की बहुत विडंबना करी थी, फिर भी तापस अग्निशर्मा, गुणसेन को कल्याण मित्र मानता था। क्षमा, नम्रता, तप, त्याग, तितिक्षा आदि अपने स्वयं के गुणों की मुल में गुणसेन कुमार को अग्निशर्मा तापसमानता था। ___ वर्षों व्यतीत हो गए, राजकुमार गुणसेन राजा बन गया । एक दिन राजा को जानकारी मिली कि - पास के वन आश्रम में महा तपस्वी तापस आए हुए हैं। दर्शन की इच्छा हुई। राज परिवार के साथ दर्शन करने गया। अग्नि शर्मा तापस के दर्शन हुए। राजा गुणसेन ने पूछा - इतना दुष्कर तप और व्रत लेने का निमित्त क्या है ? उत्तर में अग्नि शर्मा ने कहा - दूसरे की तरफ से पराभव, कदरुपता, दरिद्रता का दुःख और राजपुत्र गुणसेन मेरे वैराग्य-तपस्या आदि के निमित्त बने हैं। प्र.:- राजपुत्र गुणसेन कल्याण मित्र कैसे बना ? उत्तर :- अग्नि शर्मा ने गुणसेन को कुमार अवस्था का वृतांत याद कराया। प्र. :- हे भगवंत ! मैं ही गुणसेन हूँ। मैंने तो आपकी बहुत विडंबना की फिर मैं कैसे कल्याण मित्र हुआ? उत्तर :- हे राजन् ! आपने यदि विडंबना न की होती तो मैं नगर छोड़कर नहीं जाता, मुझे कुलपति नहीं मिलते । उनके संसर्ग में मैंने यह साधना मार्ग स्वीकार नहीं किया होता, इन सब का मूलभूत कारण आप ही हो इसलिए आप कल्याण मित्र हैं। प्र.:- गुणसेन ने पूछा - भगवन् ! आपका पारणा कब आने वाला है ? उत्तर :- पाँच दिन बाद। गुणसेन ने कहा - आपके पारणे का लाभ मुझे दीजिए। उत्तर :- तपस्वी ने कहा - पारणे के दिन में अभी देर है, कौन जाने पाँच दिन के अंतराल में क्या हो? प्र. :- यदि कोई विघ्न न आए तो यह लाभ मुझे देना। उत्तर :- आपका आग्रह है तो आपकी प्रार्थना मैंने स्वीकार कर ली है। गुणसेन के मन में कोई पाप नहीं था, परन्तु पारणा के दिन असह्य दर्द उठा और राजा बेचैन हो गया । राजा के परिवार के सभी लोग घबरा गए । हलवाई, मंत्री, सेवक सभी 9@G©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®© 331 90GOOGOOGOGOGOG@GOOGOGOD
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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