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________________ GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG लक्ष्मीदेवी बोली - 'मैं तो रहने के लिए आई हूँ। प्रबल पुण्य का कार्य करके मुझे यहां रहने को मजबूर कर दिया है।' कुबेर सेठ ने 3 दिन में किया प्रबल पुण्य कार्य का फल तुरंत देख लिया । लक्ष्मी देवी ने सेठ से कहा - कल प्रात: मेरे मंदिर में जाना, वहां एक योगी मिलेगा, उसको घर लाकर भोजन कराना, जब वो जाने लगे, तब उसको लकड़ी की मारना, सोने का पुरुष हो जाएगा। जरुरत पड़े तब सोने का हाथ-पाँव काट कर उपयोग करना । हाथ-पाँव उसके वापिस आ जाएंगे। कुबेर निहाल हो गया। याद रखिए, लक्ष्मी पुण्य के अधीन है। प्र. प्रत्येक मानव एक समान क्यों नहीं ? उ. स्थूल (जो दिखाई दे रहा है) जगत में से सूक्ष्म जगत में जाइए तो इसका कारण मिल जाएगा। वृक्ष की जड़ और बीज दिखाई नहीं देता है। एक सुई की नोक पर लाखों जीवित कोष हैं, जीव रस में जीव केन्द्र (Nucleus) हैं, जीव केन्द्र में गुण सूत्र (Chromosomes) है । गुणसूत्र में संस्कार सूत्र (Genes) हैं; संस्कार सूत्र में माता-पिता के, कई पीढ़ियों के संस्कार भरे होते हैं । संस्कार वाहक (Gene) बहुत छोटा, परंपरा निर्वाहक है। 6 लाख संस्कार भरे हैं। दो सगे भाइयों में फर्क होता है - क्यों ? इसके लिए (Gene) भी सूक्ष्म कर्म शरीर की ओर आगे देखना पड़ता है। नाभि में आत्मा, उसकी परिधि में कषाय, कर्म संरचना, मोहनीय ज्ञानावरण, आदि कर्मों ने आत्मा को घेर रखा है । आत्म की निकट जल-दूध के समान पृथक-ऐसी आत्मा और कर्म है । आत्मा की शक्ति पर कर्म प्रकृति का आवरण आ जाता है । ७०७७०७00000000000288906090090505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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