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________________ ®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG बुरा करने समान है । वैर से वैर बढ़ता है, ऐसे आत्मवादी जीव सभी आत्माओं को अपने समान समझकर सभी के साथ मैत्री संबंध-सा अनुभव करता है । मैत्री के प्रकाश में राग-द्वेष की वासना घट जाती है। ईश्वर के अस्तित्व में संदेह करने वाला दुःख में कठिन विपत्ति के समय में घबरा जाते हैं और इधर-उधर किसी की शरण ढूंढने लगते हैं। जीव की अंशतः शुद्धि,पूर्ण शुद्धि की शक्यता को पुरवार करती है और पूर्ण शुद्धि प्राप्त हो जाती है तब परमात्म पद पा लिया ऐसा कहा जाता है, यही ईश्वर पद है। जीवों का प्रत्येक जन्म पूर्व जन्म की अपेक्षा से पुनर्जन्म ही है। भूतकाल के किसी जन्म को सर्वप्रथम जन्म मानने से, जीव पूर्व में अजन्मा था यह मानना पड़ेगा, ऐसा मानने से शुद्ध आत्मा को कर्म लग सकते हैं । यह भी मानना पड़ेगा। तो फिर आत्मा की मुक्ति का मतलब और अस्तित्व उड़ गया ऐसा होगा । देह धारण की परंपरा अखंड चलती है एवं देह की संलग्नता विलग होती है तो वह हमेशा के लिए विलग होती है । ऐसा मानना ही सुसंगत लगता है। अनीति और अनाचारी व्यक्ति सुखी दिखाई देता है, धर्मी दुःखी दिखाई देता है इसका स्पष्टीकरण यह है कि पूर्व जन्म के संस्कार से युक्त वर्तमान जिन्दगी निर्मित होती है। वर्तमान जिन्दगी के अनुरूप भविष्य की जिन्दगी निर्मित होती है । न्याययुक्त धन उपार्जन ही प्रशस्त और पुण्य मार्ग है; धर्म के लिए धन अच्छे-बुरे मार्ग से एकत्रित करना उचित नहीं । यह धर्म के लिए धन की इच्छा करने जैसा कार्य है । कीचड़ में पांव डालकर फिर धोने के समान है। कीचड़ में पांव गंदे करना ही नहीं, यही अच्छा है (सर्व विरति ही धर्म है) धर्मार्थ यस्य वित्तेहा वरं तस्य निरीहता । प्रक्षालनाद्धि पंकस्य, दुरात स्पर्शनं वरम् ।। ७050505050505050505050505050279900900505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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