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________________ ®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG * लाख में एक कर्म का बंधन जिस रुप में बांधा है वह उसी रुप में पुन: उदय में आता है। हंसते हुए कर्म बांधे हैं वे रोते हुए भोगना पड़ते हैं। ‘समयं गोयम मा पमायओ' (हे गौतम ! समय को प्रमाद से जाया मत करो) जिसके उदय से दुःखी होते हैं, संक्रमण के द्वारा सुखी हुआ जा सकता है। * कर्म के 4 प्रवेश द्वार :- (5वाँ प्रमाद को भी शास्त्रों में गिनाया गया है) 1. मिथ्यात्व * सत्य के प्रति पक्षपात का अभाव। * सत्य का पक्षपात हृदय के साथ संबंध रखता है, अंतर चक्षु खुलने पर हृदय शुद्ध होता * असत्य का पक्षपात रुप मिथ्यात्व दूर होने पर कर्मों के प्रवेश का प्रथम द्वार बंद हो जाता * जब तक ममत्व का त्याग नहीं होता तब तक मिथ्यात्व के बंधन नहीं टूटते । * भव स्थिति परिपक्व होती है और कर्मबन्ध मंद होते हैं, उसके बाद आनंद रूप धाम ऐसा आत्मप्रकाश, आत्म स्वरूप का प्रकाश उत्पन्न होता है, विनय की वृद्धि, द्वितीया के चंद्र समान बोधिबीज का अंकूर प्रस्फुटित होता है। 2. अविरति * सत्य के जीवंत आचरण का अभाव । * श्रद्धा समकित होते हुए भी, कर्मों का बुरा प्रभाव जीव पर आवेगमय पड़ता रहता है । इससे सत्य की राह प्राप्त नहीं कर सकता। * यथाशक्ति अच्छे आचरण से जीवन परिवर्तन होता है और द्वितीय द्वार बंद हो जाता है। * यह जीव के लिए देश विरति धर (श्रावक) कहलाता है । सर्वविरति धारण करे तो अविरति रुप द्वार संपूर्ण स्थिति में बंद हो जाता है। GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 258 GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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