SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Ge बजाकर जगत को मानो कह रहे हों इन समस्त तलस्पर्शी अभ्यासों का साररुप या इतने वर्षों के मंथन द्वारा प्राप्त नवनीत रुप भाव है, वह यह है कि 'जिन आगम ही तारे' तो इन 12 अंग का योगानुयोग आयोजन रुप 12 विभागों का पूर्ण अध्ययन ही जिज्ञासु के लिये अनिवार्य रुप बनता है । एक-एक विभाग में बहुत संकलन रूप तो बहुत सर्जन रुप भी है। आधारभूत माहिती तथा उसके समस्त आधार ग्रंथों की भी विगत द्वारा जिज्ञासु उसका भी लाभ ले सके यह लक्ष्य बहुत ही प्रेरक बन जाएगा। 12 विभाग की विषय सूचि, विषयों की भिन्नता के साथ गहरा अनुभव कराती है । निखालसतापूर्वक कर्ता की प्रसिद्ध रहित सर्जनशक्ति का कौशल्य रखने वाले श्री विजयभाई दोशी को जितना धन्यवाद दें उतना कम है। श्री विजय भाई मूल से प्रकृति से भावुक एवं कविहृदय होने से उनकी शैली काव्यमय प्रवाहिता से संपूरित है और फिर भी योग्य शब्द पसंदगी एवं अर्थगाभीर्य का भी उपयोग हुआ है । आध्यात्म जगत के भाव तर्कबुद्धि एवं तथ्य के साथ जुड़े हुए होने से वहां शब्द की पसंदगी काव्यात्मक से अधिक प्रमाणभूत होना चाहिए इसकी भी सावधानी यहां आवश्यक है, यही सर्जक की श्रेष्ठ जागृति है । किसी भी सर्जक की सफलता में पर्दे के पीछे का सहयोग बहुत बड़ा परिबल होता है । उसी प्रकार यहां भी आपके जीवन संगिनी नलिनी बेन का अद्भुत सहयोग, समर्पण एवं समयदान को याद किए बिना प्रस्तावना, अधूरी ही मानी जाएगी । श्री विजयभाई दोशी के इस उपक्रम के बाद भी अभी उनके सुदीर्घ आयुकाल की प्रत्येक पल के सफल रुप में अधिकाधिक ग्रंथों की प्राप्ति हो ऐसे हृदयोद्गार के साथ मैं उनके प्रयत्न की पूर्ण अनुमोदना करती हूँ तथा अदृश्य के आशीर्वाद की अपेक्षा कर विराम लेती हूँ । विदेश में रहने के पश्चात् भी 'वीतराग को नहीं भूले और वतन छोड़ने के बावजूद भी संस्कार नहीं छूटे' ऐसे जिज्ञासु जैन समाज की अपेक्षा में से उद्भवित ऐसे मोतियों का मरजीवा के समान श्रुतसागर के अथाग प्रयत्नशील पुरुषार्थ को करने वाले सर्जकों को अभिनंदन पूर्वक की अभिवंदना के साथ.... - तरलाबेन दोशी का जय जिनेन्द्र 20
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy