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________________ २७०७090909009009009090050७०७09090090909050७०७090७०७७०७०७ कर्म का साथ यात्रा – सम्यक्दर्शन से मोक्ष की (राग - केदार) आव्यो जगमां एकलो, साथे कर्म नो सथवारो रे, ज्ञानी कहे छे सम्यग् दर्शन, जन्म मरण नो आरो रे । आव्यो जग मां .... वितरागी वैभव ना समज्यो, रागी थई तूं भव-भव भटक्यो, राग द्वेषनां तांडव काजे, थाये ना छुटकारो रे ॥ आव्यो जग मां .... मानव जन्म मल्यो अति दुर्लभ, छुटकारो करवाने सुलभ, रत्नत्रयी ना पंथे विचर तू, झलहलशे जन्मारो रे ॥ आव्यो जग मां .... सर्व जीवों ने 'मिच्छामि दुक्कडं', भावजे तूं अरिहंत अधिगम, 'श्रद्धांध' हृदये भजतां उघडशे, मोक्षपुरीनां द्वारो रे ॥ आव्यो जग मां .... 'श्रद्धांध' 5/1999 ७05050505050505050505050509024850905050505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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