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________________ JUJUJUJJJJJJJJJJJJJJJJJJG आश्रव और अनुबंध आश्रव :- जीवन में शुभाशुभ कर्म का आना वह है आश्रव । तत्वार्थाधिगम सूत्र का 6ठे अध्याय में आश्रव का विवेचन है । मन, वचन और काया की क्रिया ही आश्रव । जहाँ योग वहाँ आश्रव । योग वीर्यांतराय के क्षयोपशम/क्षय से होता है। 108 कारण होते हैं। सरंभ : प्रमाद के कारण हिंसादि प्रयत्नों का आवेश। समारंभ : ये कार्य करने का साधन एकत्रित करे। आरंभ : अंत में उस समय कार्य को प्रारंभ करे। 3x3 मन, वचन, काया। 9x3 करना, कराना और अनुमोदना करना। 27x4 कषाय, इस प्रकार आश्रव 108 हुए। बंध : कर्म का आत्मा के साथ दूध-पानी के जैसा हो जाना। संबंध : कार्मण वर्गणा का आत्मा द्वारा ग्रहण होने की क्रिया, वह संबंध है। राग द्वेष इसके मुख्य कारण हैं, इसलिए बंध और संबंध होते हैं । बंध होने में आत्मा परिणामी द्रव्य है । इसलिए बंध हो सकता है। 14वें गुणस्थानक में बंध नहीं है। योग है तब तक ही लेश्या है। त्रसकायपन 2000 सागरोपम से अधिक नहीं होता। पंचेन्द्रिय जीव 1000 सागरोपम से अधिक निरन्तर नहीं रह सकते। मनुष्य भव लगातार 7 बार ही मिलता है। आश्रव कम कैसे होता है ? हेय का चिंतन : पाप, आश्रव, बंध । ज्ञेय को जानना : जीव - अजीव । उपादेय को प्राप्त करना : पुण्य, संवर, निर्जरा, मोक्ष । इनके लिए प्रवृत्ति करो। ७050505050505050505050505090235900900505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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