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________________ 909009090090900909090090090090900909009090090090905 'स्वाध्याय तप का परमानंद' हंस मोती का भोजन करता है, उसी प्रकार देव , गुरु एवं धर्म की अविरत कृपा के परिणाम स्वरुप भी विजय भाई दोशी द्वारा किया गया श्रुत भीनी आंखों में बिजली चमके' का संकलन जैन धर्म के विराट आकाश की पहचान करवाता है। धर्म के शाश्वत सिद्धांतों की त्रिकाल-स्पर्शिता का हृदयंगम अनुभव विजयभाई के इस अनुपम सर्जन में होता है। जैन धर्म के महासागर में श्रावक एक बार गहरी डुबकी लगाए और एक पानीदार मोती प्राप्त करे, फिर जीवन भर महासागर के तल में जाकर उसके उत्तम मोती को खोजता और पाता रहता है । ऐसे विरल धर्म स्पर्श एवं प्रबल आध्यात्म भाव का सुंदर मिलन आपके इस संग्रह में देखने को मिलता है। जहाँ कहीं भी श्रुतज्ञान का प्रकाश मिला, उसे एकत्र करने का आपने यहां सुप्रयत्न किया है । तेरह विभाग में हुए विविध विषयों का यह संकलन प्रत्येक विषय की एक दिशा बताता है और दर्शाता है कि इस दिशा में जाते हैं तो विशाल आकाश और अवर्णनीय आनंद का अनुभव पाते हैं । ऐसी श्रुतज्ञान की धारा इस ग्रंथ के तेरह विभागों में एवं विविध विषयों में प्राप्त होता है। इस चयन एवं संकलन के पीछे विजयभाई की सूक्ष्म दृष्टि प्रगट होती है । ऐसे संकलन श्रुत ज्ञान के विराट आकाश की हमें झांकी कराता है। इसकी रचना इसके संकलनकर्ता के हृदय को तो आनंद देता ही है, परंतु साथ ही साथ यह रचना जीवन के आचरण में प्रगट होते परम आध्यात्मिकता की अनुभूति प्राप्त कराती है । यह उत्कृष्ट कार्य करते समय विजयभाई ने श्रुतज्ञान का कितना पुरुषार्थ किया होगा, इस विषय में एकांत स्वाध्याय किया होगा । श्रुत भीनी आंखों में कितनी बार आनंद की बिजली की चमक उठी होगी वह विचारणीय है। ऐसे सुंदर संकलन के लिए उन्हें धन्यवाद देता हूँ एवं श्रुत ज्ञान की धारा अधिक पुष्ट बनते हुए उनके लेखन को और उसके द्वारा हमारी आत्मा को परिप्लावित करती रहे, ऐसी अभ्यर्थना रखता हूँ। - पद्मश्री डॉ. कुमारपाल देसाई 500900509005000500050165009005050505050505050500
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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