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________________ UUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUGI * निश्चय नय और व्यवहार नय; दोनों नय अपने-अपने स्थान पर बलवान है । मगरमच्छ का बल पानी में अधिक रहता है । हाथी का पृथ्वी पर हाथी जल में निर्बल और मगर पृथ्वी पर निर्बल । इस प्रकार अपनी-अपनी जीवन शैली में योग्य महत्व देना चाहिए। * आत्मा अनादि है, संसार अनादि है, आत्मा और कर्म का संयोग अनादि है । यह वीतराग वाणी है और इसे कंठ में उतारो, इन तीनों स्वरूपों को यदि अनादि नहीं माना जाए तो हजारों प्रश्न खड़े होंगे और उनका समाधान कहीं नहीं होगा। * अगत्य की बात अच्छे से ध्यान में रखो इस काल में भले दूसरी नरक से आगे नहीं जा सकते किन्तु निगोद में तो जा ही सकते हैं। * बाधा (अविरति दूर) लेने का मन कब होता है ? ____ अप्रत्याख्यानीय कषाय मोहनीय कर्म का उदय दूर होता है, तब अप्रत्याख्यानीय कषाय का निकाचित उदय हो जाए तो छोटा से छोटा व्रत, पच्चक्खाण भी नहीं कर सकते । छोटे नियम से लगाकर दीक्षा (संयम) जैसा बड़ा नियम करने के लिए बहुत पुरुषार्थ करके ऐसे कषायों का उदय नहीं होने देना चाहिए। पाप प्रवृत्ति नहीं करते हुए भी पाप क्यों लगता है ? कारण - पाप करने की इच्छा या विचार मन में उत्पन्न होते ही पाप लगता है । जैसे किसी को मारा नहीं परन्तु मारने का विचार करने मात्र से पाप लग गया । पाप करने के भाव मन में दृढ़ है ही, इसलिए बाधा में नहीं ले सकते । तो अशुभ प्रवृत्ति न करते हुए भी पाप तो लगता ही रहता है । इसलिए जो कार्य हमें नहीं करना है उसका प्रत्याख्यान (त्याग) कर लेना चाहिए। गलत विचार जब आने लगे तब उस समय अच्छे विचारों को मन-मस्तिष्क में लाकर गलत विचारों को रोक देना चाहिए। ___ पाप प्रवृत्ति के भाव उत्पन्न होना, वह अतिक्रम और उसके लिए उपाय सोचनाव्यतिक्रम । पाप प्रवृत्ति में आगे बढ़ना, वह अतिचार और पाप कर्म करना, अनाचार कहा जाता है। जैन शासन में प्रवृत्ति से अधिक परिणाम का, परिणति का महत्व अधिक बताया है। ७०७७०७00000000000211509090050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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