SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOG विनय के 10 प्रकार :- अर्हत्, सिद्ध, मुनि, धर्म, चैत्य, श्रुत, प्रवचन (चतुर्विध संघ), आचार्य, उपाध्याय, दर्शन के विषय में पूजा-प्रशंसा-भक्ति-अवर्णवाद का नाश, अशांति का परित्याग करना ये समकित सूचक 10 प्रकार का विनय है। * विनय के 7 प्रकार भी बताए हैं :1. ज्ञान विनय - सम्यग्ज्ञान, ज्ञानियों की प्रशंसा, भक्ति, वैयावच्च, सामायिक के समय स्वाध्याय यह ज्ञान विनय है। 2. दर्शन विनय - अरिहंत पमात्मा, उनकी प्रतिरुप मूर्तियाँ, पंच महाव्रतधारी साधु, साध्वी, तपस्वी एवं ज्ञानी के सहवास से सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति होती है । नमुत्थुणं, लोगस्स आदि सूत्र वारंवार बोलने से सम्यगदर्शन की शुद्धि होती है । स्वाध्याय से सम्यग्ज्ञान बढ़ता है और उससे विशेष रूप से सम्यग्दर्शन की शुद्धि होती है । पापों के त्याग का भाव रुप सम्यग् चारित्र की प्राप्ति होती है। एकाग्र चित्त से (मन प्रणिधान) अरिहंत की द्रव्य एवं भाव पूजन करना, शुद्ध अनुष्ठान में मन-वचन-काया को स्थिर कर गुणानुवाद करना, तुम स्वयं गुणवान बनोगे और 'नमो अरिहंताणं' पद को प्राप्त करने की योग्यता प्राप्त करोगे। 3. चारित्र विनय - आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान को रोकने वाला विनय है। प्रतिक्रमण से चारित्र शुद्धि होती है। 12 व्रत, 5 महाव्रत स्वीकार करने के लिए तैयार रहना। 4. मनो विनय - मन से विनय भाव रखना। 5. वचन विनय – 84 लाख योनियों में 52 लाख योनि के जीवों के जिव्हा नहीं होती; केवल 32 लाख योनि के जीवों को जीभ होती है। 6. काय विनय - माता-पिता, गुरु की वैयावच्च विनय करना (सेवा) । काया के द्वारा उनकी सेवा-सुश्रुषा करना, यह काय विनय कहा जाता है। 7. लोकोपचार विनय - व्यवहार में वफादारी, सभ्यता, सत्यता को अपनाना, बड़ों का बहुमान करना, भद्रिक (सरल) अहिंसक व्यवहार, गुरु के प्रति अपना सर्वस्व समर्पण जिससे हमें नया ज्ञान मिलता रहे और पुराने का परिवर्तन होता रहे। GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 1980 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy