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________________ समकित के अपवाद रुप 6 आगार आचार्यश्री विजयलक्ष्मी सूरि विरचित 'उपदेश प्रासाद' ग्रंथ से G समकित के अपवाद रुप 6 आगार : (1) राजा की आज्ञा से ( 2 ) गुरुजन की आज्ञा से (3) आजीविका के लिए (4) समुदाय के कहने से (5) देव के बलात्कार से (6) सबल (बलशाली) पुरुष के आग्रह से । ये 6 आगार (छूट) अपवास से लेकर समकित को बचाया जा सकता है । राजा की आज्ञा से मिथ्यादृष्टि को भी नमन करना पड़ता है । उसको 'राजभियोग' आगार कहते हैं । उदा. :- कार्तिक सेठ को राजा की आज्ञा से गेरिक तापस को मासक्षमण के पारणे में भोजन पिरोसना पड़ा और गेरिक तापस ने नाक पर अंगुली फिरा कर नाक काटने की चेष्टा दिखाई। यह देखकर कार्तिक सेठ ने विचार किया कि "यदि पहले ही दीक्षा ले ली होती तो तापस (मिथ्यात्वी) से अपमानित नहीं होना पड़ता ।" यह विचार करते हुए 1008 पुरुषों के साथ दीक्षा ग्रहण की । अनुक्रम से द्वादशांगी का अभ्यास कर 12 वर्ष संयम पालन के बाद कार्तिक सेठ सौधर्मेन्द्र पद भोग कर वहाँ से च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धि पद प्राप्त करेंगें । ‘देवलोक में तिर्यंच नहीं होता' परन्तु अभियोगिक देव को इन्द्र की आज्ञा से ऐरावण हाथी का रूप बनाकर फर्ज़ निभाना पड़ता है । Interesting point :- कितनेक दृढ़ धर्मी आत्मा प्रबल आंतरिक शक्तियुक्त होती है, जो राजा की आज्ञा होने पर भी व्रत का भंग नहीं करती और नियम का पालन करती है । दृढ़ धर्मी अपवाद रुप आगार रखकर व्रत भंग नहीं करते इसका सटिक उदाहरण : 192
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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