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________________ GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OGOGOGOGOGOG उत्पत्ति और लय की प्रक्रिया में गोल-गोल भ्रमण करते रहते हैं । मानव को यंत्रवत् समझकर स्वयं के विनाश को निमंत्रण देते हैं। जो सिर्फ आत्मा की ही बात करता है और पुरुषार्थ की उपेक्षा करते हैं वे प्रगति के प्रति उदासीन और दुःखी जीवों के प्रति कठोर बनते हैं । कीचड़ में जन्म, यह उसका कर्म फल, कमल बनना यह इसकी महत्ता है। जीने के लिए आत्मा और पदार्थ दोनों आवश्यक है और दोनों के बीच संतुलन की आवश्यकता है। संतुलन किस प्रकार से ? पुद्गल पर आध्यात्मिक प्रकाश डालने से, जड़-चेतन का भेद समझ में आता है। मन का अनुभव क्या है ? पुद्गल का ही सर्जन है। चाहे हम उसे आध्यात्मिक अनुभव का मुखोटा पहना दें ? मानव चित्त के अतीत पदार्थों का सौंदर्य और भव्यता देखने के लिए मुक्त नहीं है। इसलिए बाह्य चर्चा के प्रपंच में पड़ना-इससे तो मन से परे होने की इच्छा वाले जीव अंतर्मुखी बनते हैं । आत्म निरीक्षण से आत्मशुद्धि होती है । इसी निरीक्षण से चमत्कार जागृत होता है । जागृति का प्रकाश बढ़ता है । पुराने अशुभ तत्व दूर होते हैं और नए नहीं आते हैं। क्रोध का अतिक्रमण, ईर्ष्या की चिनगारी, लोभ का भारीपन, अहं का उछलना, माया, छल-कपट आदि कोई भी अशुभ तत्व के प्रवेश करते ही तत्काल ज्ञान का प्रकाश जगमगा उठता है। जागृति और स्वनिरीक्षण की सतत प्रक्रिया से नवीन जागृति का प्रभात खिल जाता है। इस स्थिति में मन आत्मा पर नियंत्रण नहीं कर सकता है । आत्मा का अधिकार मन पर होता जाता है। जड़ अजीव पदार्थों की शक्ति भी बहुत होती है। मन के स्तर को आच्छादित कर सकता है। शराब, गांजा, अफीम ये इसके दृष्टांत हैं। दृश्य पदार्थ में रंग, रुप, स्पर्श, गंध के गुण हैं । अमूर्त तत्वों में गति, स्थिति, अवकाश और काल हैं । गति और स्थिति के बीच अणु का सतत सर्जन होता है । इस प्रक्रिया में अणु 5@GOG©®©®©®©®©®©®©®©®©®©GOGO 189 9@G©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®®
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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