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________________ GOGOGOG@GOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©GOGOG@GOGOGOGOG विचारों-भावों-अध्यवसायों के अनुरुप इसका आकार निरंतर बदलता रहता है। ___ मन:पर्यवज्ञानी मुनि, रुपयुक्त ऐसे मन को वे स्पष्ट देख सकते हैं । सामान्य इन्द्रियों से अति सूक्ष्म होने से ग्राह्य नहीं है । जड़ पुद्गल से बना हुआ है । आत्मा तो अरुपी है, वहां चेतना है । आत्मा को प्रत्यक्ष केवलज्ञानी ही कर सकते हैं । द्रव्यमन का प्रभाव 24 घंटे हम अनुभव करते हैं। द्रव्यमन साधन है । विशेष महत्व तो भावमन का है । जो आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है। यह भावमन चैतन्यमय है, जबकि द्रव्यमन जड़ है। अनंत जन्मों के अच्छे बुरे संस्कार के शुभाशुभ भाव मन में जमा रहते हैं। * कषाय और विकारों से वासित मन वो ही संसार और उसमें सर्वथा मुक्त मन वो ही मोक्ष। * मात्र काया, वाणी या इन्द्रियों की प्रवृत्ति के कारण कर्मबंध नहीं होता किंतु इस प्रवृत्तियों में मन मिल जाता है तो ही कर्म का बंध या निर्जरा होती है। * सुख-दुःख का कारण मन और बंध - मोक्ष का कारण भी मन । श्री सिद्धर्षिगणी लिखित 'उपमिति भव प्रपंचा कथा' ग्रंथ मनोविज्ञान का विश्लेषण (Analysis) समझने के लिए अद्वितीय ग्रंथ है। उसमें लिखा है “मन के सुख के बिना कोई सुखी नहीं होता और मन के दुःख के बिना कोई दुःखी नहीं होता।" जीवन में प्रत्येक वस्तु संबंधी सत्य-असत्य का निर्णय तुम्हारा भावमन ही करता है । टकटकी लगाए विकारी दृश्य देखती आंखों में, यहां आखें अपराधी नहीं, तुम्हारा भावमन अपराधी है। कारण कि - विकारों का जन्म ही भावमन में होता है । Amazing.....! * द्रव्यमन साधन है, प्रेरक तो आत्मा है । आत्मा ही एक ऐसा तत्व है कि जो स्वयं को पहचान सकती है। समझा भी सकती है और स्वयं को बदल भी सकती है। आत्मा जैसा कोई दूसरा तत्व नहीं है जो इस प्रकार स्वयं को समझा सके और बदल सके। 505050505050505050505050500175900900505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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