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________________ ܘ@ܘ सकता । मन जो मांगे वो देकर उसको शांत करना उसे योग कहा है । यह एक बाल चेष्टा है, मन स्थिर होने की संभावना, न के बराबर है । दूसरा रास्ता - मनोनिग्रह का है; प्रशस्त योग है, कठिन है किन्तु लाभदायक है । 1 मनोनिग्रह करने के लिए 12 भावना का चिंतन, मन के प्रत्येक प्रश्न का समाधान देकर शांत करने का प्रयत्न करना कहा है । निरन्तर प्रयत्न से मन के संकल्प-विकल्प कम होंगे, मन शांत होगा । इसके लिए मन को समझाते रहो उसे प्रतिबंधित करो । बच्चा रोता हो तो माता-पिता एक चांटा मारकर उसे चुप कर देते हैं किन्तु 22 वर्ष का युवान पुत्र को प्रेम से समझाकर शांत किया जाता है। छोटे दोष हो तो अतृप्ति के शमन रुप प्रथम राह से मन को शांत किया जा सकता है । बड़े दोष के लिए भावना - चिंतन और समझाइश से काम लिया जाता है । साधक मन को निरन्तर समझा - समझाकर अशांत मार्ग पर जाने से रोकता है । अर्थात् आत्मा की तरफ गति करने को प्रेरित करता है । आत्मा और आत्महितको FOCUS में रख बाह्य भावों से दूर रखता है । मन कंट्रोल होता जाता है और संसार से अरुचि होती जाती है । अशुभ कर्म का उदय बलवान हो जाने पर कई वर्षों की मेहनत को निष्फल कर देता है । 'समरादित्य केवली' के उदाहरण में, मासक्षमण के पारणे मासक्षमण का कठिन तपस्या करने वाले ‘अग्निशर्मा' तापस भी मनोनिग्रह करने में सफल हो गए थे किन्तु मान रुपी कषाय के कारण असमाधि में आ गए और दुर्गति में गए । आत्मा और मन के युद्ध में मन यदि निर्बल बन जाता है तो कर्म बलवान हो जाते हैं और साधक को हार का अनुभव करना पड़ता है । ऐसे समय में भी यदि साधक पीछे न हटे और मन को समझाता ही रहे, मन को सबल बनाता है, इस प्रकार Diversion करते रहना चाहिए । सम्यग् ज्ञान के द्वारा मन को मनाते रहे यह तीसरा उपाय कहा है । जीवन में जो आग्रह नहीं रखते स्वयं को कषाय का पोषण करने के लिए 'मेरा सो सच्चा' नहीं करता वह जीवन की लड़ाई जीत जाता है । और कर्मों से बच जाता है । सज्जनता महागुण है उसको अपनाइए । 168
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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