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________________ परमात्मा की वाणी सुनो परमात्मा की वाणी का चिन्तन करो परमात्मा की वाणी का मनन करो * श्रावक जीवन - एक राधा वेध राधा वेध = उपर पुतली घूमती है साधक की दृष्टि नीचे तेल के कड़ाह में लक्ष्य भेदने का उपर दो पल्ले में दो पांव रखे जाते हैं ऊपर खंभे पर आरा में चक्र घूमते हैं जिस पर पुतली होती है । - - - एक पुतली को ही देखना है, डाबी आंख को देखना, आंख की कीकी पर पानी जैसी दूध जैसी अमृत जैसी 1 ०७० शीतलता देती है । पुष्टता देती है शाश्वत आनंद देती है । श्रावक जीवन = राग द्वेष की पुतली साधक की दृष्टि संसार सागर में मोह को भेदने का लक्ष्य - मोक्ष अनुकूलता और प्रतिकूलता- दो पल्ले 8 आरा वो प्रमाद 8 प्रकार का अनुकूलता, प्रतिकूलता के चक्र आराधनमयी श्रावक एक मोह को ही देखता है और दर्शन मोह को भेदता है निशाना लगाना भव का भय जागृत होता है तब मोक्ष की लगन लगती है । इसको कहते हैं - श्रावक आपात मात्र मधुरो विषयोपभोग = जिसका अंत अच्छा वह वस्तु अच्छी । दुनिया किसी भी सुख का अंतिम परिणाम क्या ? वर्तमान जन्म में भी दुःख और अगले जन्म में भी दु:ख ( दुर्गति) आत्मा का सुख अनंत है । जिसका अंत नहीं ऐसा अव्याबाध सुख है । जंबू स्वामीजी, स्थूलभद्रजी, वज्रस्वामीजी, पेथड़शाह, आदि अनेक ब्रह्मचारियों का निरंतर श्रावक स्मरण करे । ब्रह्मचर्य अर्थात् आधि दीक्षा : नारी नरक नी दीवड़ी (दीपक) नर नरक नो दीवड़ो, अरस परस चिंतन करे ... ! स्त्री के साथ रहते श्रावक की स्थिति कैसी- अग्नि के साथ काम करती नारी के जैसी । समुद्र के बीच नाविक जैसी, सांप को नचाते मदारी जैसी होना चाहिए । 148
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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