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________________ 7. गृहस्थाश्रम पाश (जाल - फंदा ) है । 8. निर्मल सम्यक्त्व का पालन करना । 9. गाडरिया प्रवाह (भेड़ वाली चाल) को अनर्थकारी मानना । 10. आगम के अनुसार आराधना करनी । 11. दान आदि चतुर्विध धर्म यथाशक्ति आचरण करना । 12. घर के राग-द्वेष के भावों से विरत होकर करना । 13. राग-द्वेष से दूर रहकर हठाग्रह छोड़कर माध्यस्थ भाव धारण करना । 14. धनादि संपत्ति को क्षणभंगुर मानना । 15. धर्म करते हुए अज्ञानी लोग हंसी करे तो हमें शर्म नहीं करनी चाहिए । 16. काम-भोग का सेवन - मजबूरी में हो तो ही करना । 17. वैश्या के समान ग्रहस्थाश्रम में रहना । श्रुत ज्ञान : सिंहनी के दूध संसार में भोगवृत्ति करते हुए श्रावक अनासक्त भाव में रहे। क्योंकि आसक्ति अनर्थ का कारण है । नारी में आसक्त बनकर न रहे । विषयसुख भोगते हुए उसमें गर्त न होना । विवेक के साथ रहना । 1 राग द्वेष के अधीन होते हैं वे कभी भी विवेकशील नहीं होते । ‘श्रीफल लेकर हाथ में, वर घोड़ा बनकर जाता। ऐसा न हो । वरकन्या सावधान का अर्थ ही यह है कि . विवेक ! ....... जैसा पेथड़शाह, भीम सेठ खंभात के रहने वाले थे । ये साधर्मिकों के दिए हुए पहरावणी रुप साड़ी - दुपट्टे को नित्य दर्शन करते थे । चतुर्थ व्रत (ब्रह्मचर्य) की प्रतिज्ञा लेने के बाद भी सेठ ने 700 साधर्मियों को पहेरावणी भेजी थी । पे शाह ने 32 वर्ष की उम्र में अपनी पत्नी 28 वर्ष (प्रथमीणी देवी) की स्वीकृति से दोनों ने गुरु के पास जाकर चतुर्थ व्रत (ब्रह्मचर्य ) की प्रतिज्ञा ले ली थी । मांडवगढ़ के इस महामंत्री के अनासक्त भाव ने शास्त्र वचन को समुज्ज्वल बना दिया । 145
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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