SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७०७090909009009009090050७०७09090090909050७०७090७०७७०७०७ योग के ८ अंग 1. यम :- मुख्य व्रत - जाव जीव तक का व्रत - जैसे - 5 महाव्रत, 12 अणुव्रत । 2. नियम :- समय सीमा का व्रत - जो मूल व्रत की वृद्धि करे, जैसे- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, प्रभु भक्ति, ध्यान, ये नियम कहलाते हैं। 3. आसन :-बैठना, स्थिरता रखना, यह द्रव्य से हैं, दो भेद हैं; द्रव्य से, भाव से, पद्मासन, वीर्यासन, पर्यंकासन आदि। काया मुद्रा की स्थिरता आत्मा को परभाव में से आत्म भाव में स्थिर करती है - यह भावासन। 4. प्राणायाम :- शरीर की प्रक्रिया जिसमें गैस आदि वायु को दूर करे वह रेचक, शरीर को निरोग रखने के लिए जो वायु ली जाती है वह पूरक और जैसे कुंभ (घड़ा) में पानी भरा जाता है वैसे शरीर में धातु स्थिर होते हैं वह कुंभक । यह शारीरिक प्राणायाम हुआ। भाव प्राणायाम - बाह्य पुद्गलों की तरफ आकर्षण युक्त भावों को दूर करने के लिए रेच लगाना, रेचक शुभ भावों को पूर्ण करने वाला होने से पूरक । आत्मा में स्थिर हो गया वह कुंभक। “बाह्य भाव रेचक इहांजी, पूरक अंतर भाव, कुंभक स्थिरता गुणे करीजी, प्राणायाम स्वभाव, मनमोहन जिनजी, मीठी ताहरी वाणी ।। (श्री योगदृष्टि की सज्झाय) 5. प्रत्याहार :- त्याग, 5 इन्द्रियों को विषय विकार से दूर करना, विषय विकारों का त्याग करना, यह है प्रत्याहार। “विषय विकोर इन्द्रिय न जोड़े ते इहाँ प्रत्यारोहणजी।' 6. धारणा :- चित्त को संभालकर रखना, पकड़कर रखना । धारणा, तत्व, चिंतन अथवा आत्म हितवर्धक भावों में मन एकाग्र करके करना। 7. ध्यान :- मन की एकाग्रता, तल्लीनता, तन्मयता, भाव से ओतप्रोत, तत्व-चिन्तन आदि में मन को एकाग्र रखना, वह ध्यान, हेय भाव में से चित्तवृत्ति का निरोध करके उपादेय तत्वचिंतन में लीन होकर स्थिर होना वह ध्यान । 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO90 141 GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy