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ध्यान मंदिर नी अधखुली बारीमाथी रोकतो रह्यो वरसादनी, भीनाश ने ...
भगवान ना ध्यान मां, कांच पर नां सरकता बिन्दुओ, दीपकनी ज्योत समीप आवी,
भल्युं सुरभीमय आकाशमां.... जीवने वलग्युं, लागणी नुं धुम्मस .... !!
वरसाद हवे ना अटके तो सारुं ...
हूँ खोवाई गयो छु, दीपकनी बुझाती,
ज्योतनां
अंतरमा कशे क्योक मोक्षनी केड़ी पर ?
ध्यानमा !!!
'श्रद्धांध'
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