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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OG जीव - अजीव का स्वरूप जान लो जीव के जैसा ही अजीव भी असीम है, अद्भुत है, जीव पर अजीव का जादू चलता है। अजीव के प्रभाव से जीव भगवान् को सहजता से भूल जाता है । जो उसको सुंदर और सुहाना लगता है, मूल्यवान और दुर्लभ लगता है, वह सब जीवों का शरीर मात्र है । वह जीवों के शरीर से निकाली हुई और बनाई हुई वस्तु है। आंख से दिखती हुई दुनिया, जीवों के जीवित या छोड़े हुए (अपशिष्ट) शरीर है । उसके अलावा कुछ नहीं । अजीव में जीव के दर्शन करना ___जिसमें ज्ञान नहीं है, जीव-अजीव से भरा संसार जैसा है वैसा नहीं जाना है वह प्राणी, दुनिया की हठधर्मिता, ठगी और मायाजाल का शिकार होता है । उपद्रव और प्रपंच में अपना जीवन पूर्ण कर देता है । ऐसा श्रावक का कुल, प्रभु वीतराग का शासन, दयामय धर्म, निग्रंथ त्यागी, गुरुभगवंतों का आश्रय, करोड़ों भव तक प्राप्त नहीं होता । हाथ से बाजी हार गए फिर पछताने से कुछ नहीं होगा । गतं न शोचामि । गये समय को रोना नहीं, उठो ! और काम में लग जाओ ! याद रखना, अपनी वार्ता पालने से लेकर श्मशान तक की है । जीव को पहिचानो अजीव और 9/7 तत्वों का ज्ञान प्राप्त करो। जीवन अल्प है। महावीर के समान प्रेम वात्सल्य का झरना बहाओ, जीवन धन्य हो जाएगा । क्षमाशील, करुणामय और 'सवि जीव करूँ शासन रसी' की मैत्री भावना मन में जागृत कीजिए। परमात्मा का यह प्रेम और करुणा भाव हमारे पास है इसको अन्य को दीजिए। जिससे प्रभु की करुणा की वर्षा पुन: होने लगे । यह प्रसुप्त जगत जागृत हो जाएगा, गगन में अहिंसा का नाद गूंज उठेगा । पाक्षिक प्रतिक्रमण के अतिचार के वर्णन पर विचार करना । अपना दुःख रोकर नहीं प्रेम और सहजता से सहन करो । दुःख टल जाएगा । यह एक ही उपाय है दुःख को दूर करने का। ७०७७०७000000000001290090050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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