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________________ है ? उसने गुस्से से तुंबड़ी को आगे जाकर फैंक दी । जिस शिला पर जाकर गिरी वह शिला सोने की बन गई । नागार्जुन को समझ में आ गई कि अंतर की सिद्धि के सम्मुख संसार की कोई सिद्धि कुछ नहीं लगती । मेरा रस सिर्फ तांबे को सोना बना सकता है जबकि गुरु महात्मा का मूत्र तो पत्थर को सोना बना रहा है । यह विचार करते हुए वापिस लौटा और गुरु के चरणों में गिर गया । श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र और तप से सिद्धि एवं समृद्धि प्राप्त कर, यदि मन की दृढ़ता हो तो सुई की नोक जैसे छिद्र में से बाहर निकल सकते हो। तुम अपने शरीर को लाख योजन जितना लंबा कर सकते हो । पानी पर चल सकते हो, धरती पर डुबकी लगा सकते हो, यहाँ खड़े-खड़े मेरु पर्वत का स्पर्श कर सकते हो और तो और हवा में उड़कर शाश्वत जिन मंदिर के दर्शन भी कर सकते हो । 1 गुण वैभव की और भक्ति की महिमा उपयोगमय है । समय पर दिया गया साथ, सहयोग मनुष्य कभी भूल नहीं सकता (यदि कृतज्ञ है तो) परहित चिंता महान गुण है । गर्ग आचार्य के शिष्य सुखशीलता में खो गए। मनुष्य व स्वयं का इच्छित कार्य एकदम नहीं छोड़ सकता। भगवान क्या कहते हैं ? :- प्रभु कहते हैं कि तुम बहुत दुःखी हो, मैं तुम्हारे दुःख को जानता हूँ । उसको दूर करने का उपाय भी जानता हूँ । कारण कि "मैं तुम्हारे बीच में रहता हूँ, ये सारे दुःख मैंने सहे हैं; मैंने भी बहुत मां-बाप किए हैं; तुम्हारी तकलीफ की मुझे मालूम है। दुःख से छूटना इतना कठिन नहीं है पर सुख से छूटना मुश्किल है । तुम्हारे पास छोड़ने के लिए कुछ नहीं है । इतना बड़ा सौ धर्मेन्द्र तुम्हारे यहां जन्म लेने के लिए 32 लाख विमान की संपदा छोड़ने को तैयार है । बहुत अमूल्य अवतार है 'मानव' हाथी को कभी उड़ने का या चील को कभी तैरने का विचार नहीं आया, किन्तु मनुष्य को आकाश में उड़ने का और पाताल में उतरने विचार जरूर आया तथा उड़ा भी सही, अंदर (पाताल) उतरा भी सही । प्रश्न बने तो जिज्ञासु बना । जीव मुमुक्षु (वैरागी) बना तो मोक्ष भी प्राप्त किया । 117
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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