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________________ ®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG छुपाए नहीं छिपेगी। झूठ को सत्य करने का कोई उपाय ही नहीं है । धर्म की शरण आ जाओ। जितना दिया है उतना ही तुम्हारा है। * दुनियादारी के लिए बहुत कुछ सहन किया है, करते अब-आत्मा के लिए थोड़ा सहन कर लो, तिर जाओगे। * कृष्ण जैसे अति विलास वैभव में रमण करने वाले किन्तु हृदय धर्म-परम पद का धाम होना चाहिए । श्रीकृष्ण महाराज श्याम-कन्हैया से महाराज बन गए । रूक्मिणी आदि पट्टरानियाँ एवं हजारों रानियों के प्रिय राधारमण के रूप में विख्यात हुए । उनको राज्य, रानियाँ, वैभव और विलासमय वातावरण बहुत अच्छा लगता था। किन्तु हृदय में मुक्ति का धर्म का एवं परम पद का वास था। * प्रारब्ध (भाग्य) से सब मिल जाएगा, ऐसा नहीं : धर्म तो पुरुषार्थ से ही मिलेगा, धर्म के बदले दुनिया की कोई भी वस्तु मांगना वह नियाणा (निदान) कहलाता है। किंचित भी धर्म किया जाए या दान दिया जाए तो किसी को मालूम नहीं होना चाहिए। तन-मन-धन की शक्ति मोक्ष के लिए लगाना व्यर्थ मत खोना । * लग्न - यह मनुष्य को बंधन में लेने की गहन संसारी व्यवस्था है। * नेम - राजुल की प्रीति 9-9 भव की थी । राजमती कहती थी - मेरे तो एक नेमि प्रभु हैं, दूसरा कोई नहीं । नेमिनाथ दीक्षित होकर केवलज्ञान प्राप्त किया और शासन की स्थापना की तब राजमति ने अपने लंबे काले भंवर केशों का लुंचन कर प्रभु के हाथ से दीक्षा ले ली। किंचित् आत्मस्पर्शी आत्मलक्ष्मी सुवाक्य * उत्तम के साथ उत्तम का संयोग, उत्तमता को जगत में अद्भुत बल देता है । जैसे मणि सोने का संयोग। * अंतिम समय में जीव को शांति चाहिए । शांति अन्यत्र कहीं नहीं है, हमारे अंतर में स्थित है । उसे प्रकट करने के लिए ज्ञान (समझ) चाहिए । ज्ञान गुरु से प्राप्त होता है। गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाऊँ ? 505050505050505050505050001009005050505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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