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________________ G एक वर्ग श्री कानजी स्वामी का और एक ग्रुप श्रीमद् राजचंदजी का । मत भेद से संघ कमजोर होता है - कलियुग में तो संघ ही बल है, जहां बल है वहाँ आवाज है और जहाँ आवाज है वहां सभी सहयोगी बन जाते हैं । विचार सिर्फ एक ही करना है कि हम सब कहाँ खड़े हैं ? कहाँ पृथक (अलग) हो रहे हैं, इनके बजाय कहाँ जाकर मिलेंगे ? कहाँ एक होने की उमंग लेकर धर्मशासन को शक्तिशाली बनाएंगे ? हमारे विचार अच्छे होने चाहिए । समस्त सौभाग्य के स्वामी सर्वसंपदा के दानी प्रभु महावीर देव, स्वयं के अंतिम समय में अपापा नगरी (पावापुरी) में पधारे। वहाँ अंतिम देशना में फरमा गए - 'हे जंबू ! मैं तुझे यही कह रहा हूँ, ऐसा सुधर्मास्वामी ने जंबूस्वामी को कहा - इसी में से आध्यात्म के मोती यहां पिराने का संकलन रूप प्रयास किया गया है । अपना संपूर्ण जैन धर्म जीवदया पर ही खड़ा है। भगवान ने मनुष्य मात्र को सलाह दी है कि तुम ऐसा जीवन जीना कि तुम्हारे जीने के लिए किसी भी जीव को पीड़ा न हो । * मनुष्य को चलने मात्र से सृष्टि में एक भय खड़ा होता है । * भगवान ने कहा कि “अपनी आत्मा को समिति से सीमित और गुप्ति से गुप्त करना । " 5 समिति और 3 गुप्ति है, ये आठ प्रवचन माता कहलाती है । * बुद्धि की निर्मलता, हृदय की सरलता और विचारों की परिपक्वता के बिना सत्य जानने की उत्कंठा जागृत नहीं होती । I * तू तेरे घर में ही भूला हो गया है । जरा ढूंढो तो मार्ग मिले। याद रक्खो ! जीव भोगों से कभी तृप्त नहीं होता । विचारों का प्रभाव आत्मा पर तुरंत पड़ता है । संपन्न व्यक्ति को गरजी मनुष्य घेर लेता है, उससे वह फूला नहीं समाता और अहंकार आ जाता है । * आचार्य महाराज हिन्दी में समझाते हैं : 1 91
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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