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________________ 2 जैन विचार जैन धम 'जैन' शब्द 'जिन' शब्द से व्युत्पन्न होता है। इसका अर्थ वह व्यक्ति है जिसने अपने राग, द्वेष आदि अंतरंग और वाह्य शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली हो। फलतः 'जैनधर्म' जैनत्व के गुण के समकक्ष है। जैनों का विश्वास है कि यह धर्म इस कालचक्र में भगवान् ऋषभदेव (आदिनाथ) ने स्थापित किया था और यह बहुत प्राचीन धर्म है। इसकी चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर (आध्यात्मिक मार्गदर्शक) भगवान महावीर (599-527 ई. पू.) थे और इसके तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ (872-772 ई. पू.) थे। जैन धर्म का सार निम्न रूप में व्यक्त किया जा सकता है: 1. आत्मविजय प्रत्येक जीव अपने भाग्य का स्वयं ही निर्माता है। उसमें स्वयं को आत्मिक विकास के माध्यम से उच्चतम आध्यात्मिक लक्ष्य को प्राप्त करने का सामर्थ्य है। विश्व में ईश्वर के समान कोई उच्चतम सत्ता नही है। प्रत्येक तत्व विश्व के स्वचालित नियमों के अंतर्गत अपना अस्तित्व बनाये हुए है। 2. कर्म-पुद्गल यह एक प्राकृतिक नियम माना जाता है कि प्रत्येक संसारी आत्मा संदूषित होती है और, फलतः उसके दर्शन, ज्ञान, सुख और वीर्य के गुण पूर्णता से अभिव्यक्त नहीं होते। इन संदूषकों को 'कर्म-पुद्गल' या 'कर्म' कहते हैं। हमारी भूतकालीन और वर्तमान-कालीन प्रत्येक क्रियायें 'कर्म' को प्रभावित करती हैं और ये हमारे भविष्य का निर्धारण करती हैं। 3. पुनर्जन्म हमारे जन्म और मृत्यु का चक्र तब तक चलता रहता है जब तक हमें 'पूर्ण शुद्धता' नहीं प्राप्त हो पाती। हमारा प्रत्येक जन्म हमारे संचित कर्मों के स्तर के द्वारा निर्धारित होता है जिसकी कोटि उच्च या निम्न की जा सकती है। सामान्यतः अच्छा या सात्विक जीवन कर्मो के स्तर को कम करता है। 4. चेतना प्रत्येक जीव में विभिन्न कोटि की चेतना पाई जाती है। 'चेतना' का अर्थ जीव के 'ज्ञान और दर्शन' के स्वाभाविक गुण हैं। यह सूक्ष्म जीवों से लेकर मनुष्यों तक में पाई जाती है। यहां तक कि यह वनस्पतियों में भी पाई जाती है। ये सभी जीव प्राकृतिक नियमों के अनुरूप व्यवहार करते हैं। For Private & Personal Use Only www.yjf.org.uk 37 For Private & Personal Use Only www.yjf.org.uk
SR No.007275
Book TitleJain Thoughts And Prayers English Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Mardia
PublisherYorkshire Jain Foundation
Publication Year2017
Total Pages52
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size7 MB
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