SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वे कनड़ी और संस्कृत दोनों ही भाषाओंके पण्डित थे । बाहुबलिचरितके कर्त्ताने राजा राचमल्लका उल्लेख कर चुकनेके बाद इनके विषयमें नीचे लिखा प्रशंसात्मक श्लोक लिखा है: तस्यामात्यशिखामाणः सकलवित्सम्यक्त्वचूडामणिभव्याम्भोजवियन्माणिः सुजनवन्दिवातचूडामणिः । ब्रह्मक्षत्रियवैश्यशुक्तिसुमणिः कीत्यौघमुक्तामणिः पादन्यासमहीशमस्तकमणिश्चामुण्डभूपोऽग्रणीः॥ आचार्य नेमिचन्द्रने भी चामुण्डरायकी बहुत प्रशंसा की है । अपने प्रत्येक ग्रन्थमें उन्होंने गोम्मटराय या चामुण्डरायकी विजयकी आकांक्षा प्रकट की है । दिगम्बर सम्प्रदायके शायद किसी भी ग्रन्थमें किसी . राजा या मंत्रीकी किसी आचार्यद्वारा इतनी जय न मनाई गई होगी। इससे मालूम होता है कि चामुण्डरायकी जैनधर्म पर और जैनाचार्यों पर बहुत बड़ी कृपा रहती थी। __ आचार्य नेमिचन्द्रके बनाये हुए गोम्मटसार, लब्धिसार और त्रिलोकसार ये तीन ही ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। बाहुबलिचरितके कर्ताने भी इन्हीं तीन. ग्रन्थोंका उल्लेख किया है: सिद्धान्तामृतसागरं स्वमतिमन्थक्ष्माभृदालोढ्यमध्ये (?) लेभेऽभीष्टफलप्रदानपि सदा देशीगणाग्रेसरः। श्रीमद्गोमट-लब्धिसारविलसत्त्रैलोक्यसारामर माजश्रीसुरधेनुचिन्तितमणीन् श्रीनेमिचन्द्रो मुनिः॥ . इस श्लोकसे जैसा कि हम पहले लिख चुके हैं यह भी प्रकट होता है कि गोम्मटसार आदि ग्रन्थोंकी रचना सिद्धान्तग्रन्थोंको मथन करके, उन्हींका सारसंग्रह करके, की गई है। त्रिलोकसारके विषयमें हमारा यह खयाल है कि यह ग्रन्थ ' तिलोयपण्णत्ति' या ' त्रिलोकप्रज्ञप्ति के आधारसे लिखा गया है।
SR No.007269
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherManikyachandra Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy