SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगमीय सूक्तावलि [बृहत्कल्पसूक्तानि] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलिता आगमीय-सूक्तावलि-आदि आगम-संबंधी-साहित्य बृहत्कल्पस्य सूक्तानि आगमीयसूक्तावली ॥४१॥ AALA ७९ साहूर्ण बसहीए रति महिला न कप्पए पंती। (१६७-२-१) सुद्धपरिणामजुत्तो तस्स उ अणकमो पाली । (२०६-२-५) ८० जागरह मरा णिच्चं जागरमाणस्स बहुए बुद्धी। जो |८४ तेलोकदेवमहिया तिस्थयरा नीरया गया सिद्धिथेरावि सुवति न सो धष्णो जो जग्गति सोसया धण्णो (१६७-२-४) गया केई चरणगुणपभावया धीरा ॥ भी य सुंदरी या सीयंति सुवंताणं अत्था पुरिसाण लोगसारत्था । । अनाधिय जाउ लोगजिट्ठाओ । ताओ चिय कालगया तम्हा जागरमाणा विधुणध पोराणयं कम्मं ॥ सुवति किं पुण सेसाउ अजाओ ॥ नहु होइ सोइयब्यो जो सुवंतस्स सुत्तं संकितखलियं भवे पमत्तस्स । जागर- कालगतो दढो चरित्तमि । सो होइ सोइयब्वो जो संजममाणस्म सुत्तं थिरपरिचितमप्पमत्तस्स ॥ जागरिया दुष्वलो बिहरे ॥ लण माणुसत्तं संजमसारं च दुलधमीणं, अहम्मीणं च सुत्तया सेया। (१६७-२) में जीवा । आणाइ पमाएणं दोग्गइभयवहूणा होति । सुबह य अयगरभूओ सुयं च से नासई अमयभूयं । (२१०-१-२) होहिर गोण भूभो नटुंमि सुए अमयभूए ॥ (१६८-१-३)/८५ संतविभवा जर तय करेंति अवउज्झिऊण रहीमोसीपंत८१ ज देउलादी उ निवेसणस्सा, मझमि गुत्तं सुपुरोहर्ड च।। थिरीकरणं तित्थविवड्डी य वषणो य। (२१२-२-११) अदुद्दगम्म णय दुहमज्झे, अदूरगेहं तहियं वसंति ॥ |८६सोऊण ऊ गिलाणि पंथे गामे य भिक्सवेलाए । जुधाणगा जे सविगारगा य, पुत्तादो तुज्झ इहं वसति ।। जा तुरियं नागच्छद लग्गा गुरुए चउम्मासे ।। (२१४-१-२) मा तेऽवि अम्हं वह संचयंतु, इच्छंति सत्ते य वसंति तत्थ ॥ ८७ गयो निम्मद्दयता निरबेक्यो निहयो निरंतरया ।। (१८१-२-८) भूताणं तुबघाओ कसिणे चम्ममि छद्दोसा ॥ (२२३-२-२) ८२ अभंतरं व बझं हरति रयं तेण होइ रयहरणं । (२०३-१-३)/ ८८ विरतो पुण जो जाणं कुणति गीयस्थो व अध्यनयो वा। ८३ संजममहातडागस्स णाणवेरग्गसुपडिपुषणस्स। | तत्थवि अज्झत्थसमा संजायति णिज्जरा न चओ (२३३-१-५) REARRERAL ॥४१॥ ~ 46~
SR No.007207
Book TitleAagamiy Suktaavali Aadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages83
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy