SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'जैन शतक' के तृतीय संस्करण की भूमिका प्रिय पाठको, प्रस्तुत 'जैन शतक' का तृतीय संस्करण आपके समक्ष आ रहा है और वह भी पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट जैसी प्रतिष्ठित संस्था से प्रकाशित होकर - यह बहुत प्रसन्नता की बात है। इसका प्रथम संस्करण आज से लगभग ग्यारह वर्ष पूर्व अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन, भिण्ड (मध्यप्रदेश) से प्रकाशित हुआ था और वह अब अप्राप्य चल रहा है। 'जैन शतक' के प्रस्तुत तृतीय संस्करण में यद्यपि नया कुछ अधिक नहीं है, तथापि निम्नलिखित चार-पाँच कार्य विशेष हुए हैं। १. इसमें 'महाकवि भूधरदास और उनका जैन शतक' नामक एक परिशिष्ट नया जोड़ा है, जिसमें साहित्य-जगत के बड़े-बड़े विद्वानों के, महाकवि भूधरदास और उनके जैन शतक से सम्बन्धित अभिमतों को जहाँ-तहाँ से खोजकर प्रस्तुत किया है। ये सभी अभिमत साहित्यसमीक्षा की दृष्टि से भी अतीव महत्त्वपूर्ण है। २. 'जैन शतक' की अनेक हस्तलिखित एवं मुद्रित प्रतियों का मिलान करके पाठनिर्धारण का भी प्रयास किया है जहाँ शुद्ध पाठ का निर्णय नहीं हो सका है - वहाँ उसके पाठान्तरों को पाद-टिप्पणी में दे दिया है। आशा है विद्वद्गण उनके शुद्धाशुद्धत्व का विवेक करेंगे। ३. प्रारम्भ में विषय-सूची' लगा दी गई है, जिसमें पूरे ग्रन्थ के विषय को एक दृष्टि में समझा जा सकेगा। ४. कतिपय छन्दों के संक्षेप में 'विशेष' भी लिखे हैं । यद्यपि मैं सभी छन्दों के ऐसे विस्तृत विशेषार्थ लिखना चाहता था, जिनमें छन्द के गूढ़ भावों को भी खोलने की चेष्टा की जाए और उसके कलात्मक सौन्दर्य की ओर भी कुछ संकेत किया जाए; पर ग्रन्थ का आकार बढ़ जाने के भय से ऐसा नहीं कर सका हूँ। वैसे भी इन छन्दों का अथाह भावसागर क्या मेरे विशेषार्थो की गागर में समाता? ५. छन्दों के गद्यानुवाद में कहीं-कहीं छोटे-छोटे शाब्दिक संशोधन भी किये हैं जो वाक्य विन्यास, भाषा-प्रवाह एवं छन्दों के अर्थस्पष्टीकरण की दृष्टि से बहुत आवश्यक प्रतीत हो रहे थे। इन महत्वपूर्ण संशोधनों में मुझे अपने प्रथम संस्करण के सुधी पाठकों विशेषकर श्री राजमलजी जैन अजमेरा एवं स्व. वैद्य श्री गंभीरचन्दजी जैन के अनेक अमूल्य सुझाव प्राप्त हुए हैं। मैं उनका हृदय से आभार स्वीकार करता हूँ। आशा है अब यह कृति और अधिक उपयोगी बन गई होगी।
SR No.007200
Book TitleJain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Mahakavi, Virsagar Jain
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy