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________________ ध्यान की विशेषता भगवान महावीर ने ध्यान के बारे में एक नई बात कही कि ध्यान सिर्फ सकारात्मक ही नहीं होता, वह नकारात्मक भी होता है। दरअसल आत्मा को जैन परंपरा ज्ञान दर्शन स्वभावी मानती है। ज्ञान आत्मा का आत्मभूत लक्षण है। किसी भी स्थिति में आत्मा और ज्ञान अलग नहीं होते और वह ज्ञान ही ध्यान है। चूँकि आत्मा ज्ञान के बिना नहीं; अतः वह ध्यान के बिना भी नहीं। पढ़कर आश्चर्य होगा कि कोई ध्यान मुद्रा में न बैठा हो तब भी ध्यान में रहता है। महावीर कहते हैं कि मनुष्य हर पल ध्यान में रहता है, ध्यान के बिना वह रह नहीं सकता। ध्यान दो प्रकार के हैंनकारात्मक और सकारात्मक। आर्तध्यान और रौद्रध्यान नकारात्मक ध्यान हैं तथा धर्म ध्यान और शुक्लध्यान सकारात्मक ध्यान हैं। मनुष्य प्रायः नकारात्मक ध्यान में रहता है इसलिए दुःखी है। उसे यदि सच्चा सुख चाहिए तो उसे सकारात्मक ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। वह चाहे तो धर्म ध्यान से शुभ की तरफ़ आगे बढ़ सकता है और शुक्ल ध्यान को प्राप्त कर निर्विकल्प दशा को प्राप्त कर सकता है। इस विषय की गहरी चर्चा जैन शास्त्रों में मिलती है। वर्तमान में आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा प्रवर्तित प्रेक्षाध्यान एवं जैन योग देश में तथा विदेशों में काफी लोकप्रिय हो रहा है। जैन योग के विविध आयाम भगवान महावीर ने योग विद्या के माध्यम से कई साधना के कई नए आयाम निर्मित किए; जैसे- भावना योग, अनुप्रेक्षा, अध्यात्म योग, आहार योग, प्रतिमा योग, त्रिगुप्ति योग, पंचसमिति योग, षड्आवश्यक योग, परिषह योग, तपोयोग, सामायिक योग, मंत्र योग, लेश्या ध्यान, शुभोपयोग, शुद्धोपयोग, सल्लेखना और समाधि योग आदि। एक साधारण गृहस्थ और मुनि की साधना पद्धति में भी भगवान ने भेद किए हैं। साधक जब घर में रहता है तो उसकी साधना अलग प्रकार की है और जब वह गृह त्यागकर संन्यास ले लेता है तब उसकी साधना अधिक कठोर हो जाती है। आज भी जैन मुनियों की साधना और दिनचर्या उल्लेखनीय है। जैन योग साहित्य शायद ही ऐसा कोई जैन आध्यात्मिक साहित्य हो जिसमें योग ध्यान का विषय न हो। जैन आचार्यों ने योग एवं ध्यान विषयक हज़ारों ग्रंथों का प्रणयन प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में किया है। उनमें प्रमुख रूप से आचार्य कुंदकुंद के अध्यात्म योग विषयक पंच परमागम, अष्टपाहुड, पूज्यपाद स्वामी का इष्टोपदेश, सर्वार्थसिद्धि, आचार्य गुणभद्र का आत्मानुशासन, आचार्य शुभचंद्र का ज्ञानार्णव, आचार्य हरिभद्र का योग बिंदु, योगदृष्टि समुच्चय आदि दर्जनों ग्रंथ आचार्य योगेंदुदेव की जैन धर्म-एक झलक
SR No.007199
Book TitleJain Dharm Ek Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherShantisagar Smruti Granthmala
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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