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________________ ५४ तत्त्वज्ञान तरंगिणी द्वितीय अध्याय पूजन क्षय संसार अवस्था होकर सिद्ध दशा हो सकती प्राप्त। यह विश्वास ह्रदय में पूरा पूरा हो जाता है व्याप्त ॥ (१) मृतपिंडेन विनाघटो न न पटस्तंतून बिना जायते, धातुर्नेव विना दलं न शकट: काष्ठं बिना कुत्रचित् । सत्स्वन्येष्वपि साधनेषु च यथा धान्यं न बीजं विना, शुद्धात्मस्मरणं विना किल मुनेर्मोक्षस्तथा नैव च ॥१॥ अर्थ- जिस प्रकार अन्य सामान्य कारणों के रहने पर भी असाधारण कारण मिट्टी के पिंड के विना घट नहीं बन सकता। तंतुओं के बिना पट, खंदक ( जिस जगह गेरू आदि उत्पन्न होता है) के बिना गेरू आदि धातु, काठ के बिना गाड़ी और बीज के बिना धान्य नहीं हो सकता। उसी प्रकार जो मुनि मोक्ष के अभिलाषी हैं मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं, वे भी विना शुद्ध चिद्रूप के स्मरण के उसे नहीं पा सकते। १. ॐ ह्रीं निजानन्दधामस्वरूपाय नमः । स्वशुद्धात्मस्वरूपोऽहम् । . छंद ताटक ज्यों साधारण कारण रहने पर असाधारण कारण बिन। कार्य नहीं उत्पन्नित होता घट ज्यों पिंड़ मृत्तिका बिन ॥ तन्तु बिना पट कभी न बनता खान बिन न धातु उत्पन्न। काष्ठ बिना गाड़ी ना बनती बीज बिना न धान्य उत्पन्न। उसी भांति मुनि सौख्य अभिलाषी देखे अपना निज चिद्रूप। करे ध्यान स्मरण उसी का तभी प्राप्त हो शुद्ध स्वरूप ॥१॥ ॐ ह्रीं द्वितीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. / बीजं मोक्षतरोर्भवार्णवतरी दुःखाटवीपावको, दुर्ग कर्मभियां विकल्परजसां वात्यागसां रोधनम् । शस्त्रं मोहजये नृणामशुभता पर्यायरोगौषधम्, चिदूपस्मरणं समस्ति च तपोविद्यागुणानां गृहम् ॥२॥
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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