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________________ ४१ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान मैंन किसी की रक्षा करता कोई न मेरी कर सकता । मारन सकता कभी किसी को कोई न मुझे मार सकता ॥ अर्थ- यद्यपि यह चिद्रूप ज्ञेय ज्ञान का विषय दृश्य दर्शन का विषय है। तथापि स्वभाव से ही यह पदार्थों का जानने और देखने वाला है परन्तु अन्य कोई पदार्थ ऐसा नहीं जो ज्ञेय और दृष्य होने पर जानने देखने वाला हो इसलिये यह चिद्रूप समस्त द्रव्यों में उत्तम है। १०. ॐ ह्रीं ज्ञप्तिशक्तिस्वरूपाय नमः | दृशिशक्तिसंपन्नोऽहम् । ताटंक ज्ञेय ज्ञान का विषय दृश्य दर्शन का विषय श्रेष्ठ उत्तम । यह स्वभाव से देखन जानन हारा है अति सर्वोत्तम ॥ - ऐसा कोई विषय न जग में नहीं जानता जो चिद्रूप | ऐसा कोई दृश्य न जग में नहीं देखता जो चिद्रूप ॥ एक शुद्ध चिद्रूप ज्ञान में दृष्टित होता भली प्रकार । एक शुद्ध चिद्रूप शुद्ध ही ले जाता है भव के पार ॥१०॥ ॐ ह्रीं प्रथम अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. । (११) स्मृतेः पर्यायाणामवनिजलभृतामिन्द्रियार्थागसां च । त्रिकालानां स्वान्योदित वचनततेः शब्दशास्त्रादिकां ॥ सुतीर्थानामस्रप्रमुखकृतरुजां क्ष्मारुहाणां गुणानां । विनिश्चेयः स्वात्मा सुवमिलमतिभिर्दृष्टबोधस्वरूपः ||११|| अर्थ- जिनकी बुद्धि विमल है स्व और पर का विवेक रखने वाली है उन्हें चाहिये कि वे दर्शन ज्ञान स्वरूप अपनी आत्मा को बाल कुमार युवा आदि अवस्थाओं और क्रोध, मान, माया आदि पर्यायों के स्मरण से पर्वत और समुद्र के ज्ञान से रूप रस गंध आदि इन्द्रियों के विषय और अपने अपराधों के स्मरण से भूत भविष्यत् और वर्तमान तीनों कालों के ज्ञान से अपने पराये वचनों के स्मरण से व्याकरण न्याय आदि शास्त्रों के मनन ध्यान से निर्वाण भूमियों के देखने जानने से शस्त्र आदि से उत्पन्न हुए घावों के ज्ञान से भांति भांति के वृक्षों की पहिचान से और भिन्न भिन्न पदार्थों के भिन्न भिन्न गुणों
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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