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________________ विनम्र निवेदन विक्रम पंद्रहवी शताब्दी में हुए आचार्य भट्टारक ज्ञानभूषण जी महाराज द्वारा रचित महान आध्यात्मिक ग्रंथ श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी पर आधारित यह तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान आपके कर कमलों में प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता सहित निर्भारता प्रतीत हो रही है। एक बड़ा कार्य सहज ही पूरा हो गया। संपादन के लिए श्री डा. देवेन्द्र कुमरा जी शास्त्री नीमच का आभारी हूं। मुझे उनका मार्ग दर्शन सदैव मिलता रहता है । इसके बीजाक्षर एवं ध्यानसूत्र के लिए फलटण (महाराष्ट्र) की क्षुल्लिका द्वय क्षुल्लिका श्री सुशीलमति जी एवं क्षुल्लिका श्री सुव्रता जी का कृतज्ञ हूँ। उनकी मुझपर सदैव महती कृपा रहती है। सुन्दर कंपोजिंग के लिए शुभ श्री आफ्सेट के श्री नीरज जैन एवं मनोहर मुद्रण के लिए अंजना ऑफसेट के स्वामी श्री योगेश सिंहल को धन्यवाद है। तथा भारत बाइन्डर्स के मालिक जनाब हुमायूँ भाई ग्रन्थमाला की जिल्दों में सरेस का प्रयोग न करके सिन्थेटिक फेवीकोल का प्रयोग करते हैं। इसके लिये मैं उनका तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। अपने सभी संरक्षकों का उनके योगदान के लिए आभारी हूं | भूलों के लिए क्षमाप्रार्थी राजमल पवैया भारत की स्वतंत्रता की पचासवी वर्षगांठ पर ४४ इब्रहीमपुरा १५-८-९७ भोपाल ४६२ ००१ फोन ५३१३०९
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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