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________________ ३८२ शान्ति पाठ, क्षमापना रागादिक चिदविकार को तुम मत समझो चैतन्य स्वरूप । सर्व अवस्थाओं में जो रहता चैतन्य वही निज रूप ॥ दोहा परम शुद्ध चिद्रूप का गगनांगन सुविशाल । क्षय करता है निमिष में वसु कर्मो का जाल | इत्याशीर्वाद : शान्ति पाठ गीतिका परम शान्ति महान की इच्छा जग है हे प्रभो । मोह की मादक तरंगें अब भगी हैं हे विभो ॥ विश्व भर में शान्ति हो प्रभु नष्ट सर्व अशान्ति हो । सौख्य शाश्वत सभी पाएं सभी के उर क्रान्ति हो || परम शान्ति महान ही कल्याण मय प्रभु प्राप्त हो । अहिंसा की भावना हो शान्ति उर में व्याप्त हो ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः नौ बार णमोकार मंत्र का जाप्य क्षमापना ताटंक इस विधान में अगर भूल हो तो प्रभु क्षमा करें तत्क्षण | वत्सल निधि परमेश्वर भगवन दया करें प्रतिपल प्रतिक्षण ॥ ज्ञान भावना का आदर ही करूं सतत मैं सदा विशेष । निज चिद्रूप शुद्ध प्रगटाऊं इस विधान का है उद्देश || पुष्पांजलि क्षिपाि जाप्य मंत्र ॐ ह्रीं तत्त्वनज्ञान तरंगिणी शुद्धचिद्रूपाय नमः
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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