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________________ ३३ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान द्रव्य सिद्धि होती स्वगुणों से द्रव्यों का परिचय होता । गुण भी पृथक पृथक स्वतंत्र हैं ऐसा बोध सहज होता। पूजन क्रमांक २ तत्त्वज्ञान तरंगिणी प्रथम अध्याय पूजन स्थापना गीतिका तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिन शास्त्र को वन्दन करूं । यह प्रथम अध्याय पूर्जू मोह के बंधन हरूं ॥ जानकर चिद्रूप का लक्षण करूं निज साधना । शाश्वत सुख प्राप्ति की ही है ह्रदय में भावना || ॐ ह्रीं प्रथम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं प्रथम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं प्रथम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । .. अष्टक छंद सखी यह जन्म मरण दुखदायी । है अल्प नहीं सुखदायी । निज भावमयी जल लाऊँ । निज तत्त्व ज्ञान प्रभु पाऊं ॥ ॐ ह्रीं प्रथम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि । संसारताप ज्वर दुखमय । पल भर को कभी न सुखमय॥ निज शीतल चंदन लाऊं । दृढ़ तत्त्वज्ञान उर लाऊं ||
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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