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________________ ३२ तत्त्वज्ञान तरंगिणी समुच्चय पूजन कोई छोटा बड़ा नहीं है सभी द्रव्य हैं महिमावान । गुण अनंत का पिंड आत्मा बना बनाया है भगवान || ॐ ह्रीं श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय महाअर्घ्य नि. । जयमाला मत्त सवैया है अनंतानुबंधी की तो चांडाल चौकड़ी दुखदायी । शिवपथ में सर्वाधिक वाधक पलभर में भव दुखदायी ॥ यह अप्रत्याख्यानावरणी की चौकड़ी महा दुखमय जानो। अविरति का पाठ पढ़ाती है पल भर को भी ना सुख मानो॥ प्रत्याख्यानावरणी की भी चौकड़ी सदा ही दुखमय है । जब तक प्रमाद उर रहता है होती न कभी भी सुखमय है | वाधक संज्जवल चौकडी है यह शिवपथ पार नहीं होता। चारित्र मोह के कारण तो संहार कषाय नहीं होता ॥ इन चारों की चौकड़ी महा दुखमयी कष्टकर ही जानो । इनके क्षय का ही अब प्रयत्न करने का उद्यम उर ठानो॥ उर ज्ञान स्वदीप जलाओ अब अंधियारे को कर चूर चूर। आनंदामृत के तुम सागर शाश्वत शिवसुख भरापूर || जब ध्यान धूप होगी उर में तो कर्म सभी जल जाएंगे। पद नित्य निरंजन पाने के पावन प्रसंग भी आएंगे || भव फल से उकताए हो तो तुम श्रद्धान आत्मा का कर लो! निश्चित शिवफल पाना है तो भव दुख अवसान सभी कर लो॥ पदवी अनर्घ्य पाना है तो तुम भव अर्यों से दूर रहो । निज शुद्ध आत्मा के दर्शन कर ज्ञान धार में सतत बहो॥ .. । ॐ ह्रीं श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जयमाला पूर्णार्घ्य नि. । आशीर्वाद परम शुद्ध चिद्रूप के जो सुनते है बोल । वे ही पाते मोक्ष सुख अगम अकंप अडोल ॥ इत्याशीर्वाद :
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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