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________________ ३३९ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान समदर्शी का नृत्य देख नाचना ज्ञान हर्षित होकर । आ जाता चारित्र स्वयं ही प्राणी संयम को लेकर || . चैतन्य शक्ति ज्योतिर्मय जगमग जगमग । मोहान्धकार नाशूं मैं पाऊं शिवमग ॥ परिपूर्ण शुद्ध चिद्रूप महा महिमा मय 1 आनंद अतीन्द्रिय का समुद्र गरिमामय ॥ ॐ ह्रीं सप्तदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोहन्धकार विनाशनाय दीपं नि. । चैतन्य शक्ति युत धर्म धूप मैं लाऊं । वसु कर्मों को सम्पूर्णतया विनशाऊं ॥ परिपूर्ण शुद्ध चिद्रूप महा महिमा मय । आनंद अतीन्द्रिय का समुद्र गरिमामय ॥ ॐ ह्रीं सप्तदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि. । चैतन्य शक्ति से ओत प्रोत हो जाऊं । फल मोक्ष नाथ अन्तमुहूर्त में पाऊं ॥ परिपूर्ण शुद्ध चिद्रूप महा महिमा मय । आनंद अतीन्द्रिय का समुद्र गरिमामय ॥ ॐ ह्रीं सप्तदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोक्षफल प्राप्ताय फलं नि. । चैतन्य शक्ति ही है अनर्घ्य पद दाता । यह अर्घ्य भावना का प्रतीक विख्याता ॥ परिपूर्ण शुद्ध चिद्रूप महा महिमा मय । आनंद अतीन्द्रिय का समुद्र गरिमामय ॥ ॐ ह्रीं सप्तदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्यं नि. ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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