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________________ २८२ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी चतुर्दशम अध्याय पूजन राग की भूमि से होता नहीं है ज्ञानोत्पन्न । ह्रदय में होता रहा हैसदा से रागोत्पन्न ॥ मैं ज्ञान भावना दीप ज्योति मय लाऊं । मोहान्धकार हर उर कैवल्य जगाऊँ || चिद्रूप शुद्ध की महिमा उर में जागे । मिथ्यात्व मोह की परिणति तत्क्षण भागे ॥ ॐ ह्रीं चतुर्दशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोहन्धकार विनाशनाय दीपं नि. । मैं ज्ञान भावना धूप धर्म मय लाऊं । वसु कर्मों पर तत्काल नाथ जय पाऊं ॥ चिद्रूप शुद्ध की महिमा उर में जागे । मिथ्यात्व मोह की परिणति तत्क्षण भागे ॥ ॐ ह्रीं चतुर्दशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि. । मैं ज्ञान भावना फल पाऊं समभावी । मैं महामोक्ष फल पाऊं ज्ञान स्वभावी ॥ चिद्रूप शुद्ध की महिमा उर में जागे । मिथ्यात्व मोह की परिणति तत्क्षण भागे ॥ ॐ ह्रीं चतुर्दशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोक्षफल प्राप्ताय फलं नि. । मैं ज्ञान भावना के ही अर्घ्य बनाऊं । पदवी अनर्घ्य पाने को निज में आऊं ॥ चिद्रूप शुद्ध की महिमा उर में जागे । • मिथ्यात्व मोह की परिणति तत्क्षण भागे ॥ ॐ ह्रीं चतुर्दशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्यं नि. ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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