SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४४ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी द्वादशम अध्याय पूजन आत्म तत्त्व का जब होता है भान तभी समकित होता । ज्ञान और चारित्र स्वयं ही अंतर में विकसित होता ॥ तत्त्वज्ञान तरंग की पायी हिलोर । नाच उठा आज मेरा ह्रदय भोर || भवातप ज्वर नाश करना है मुझे । रागमय संसार हरना है मुझे ॥ ॐ ह्रीं द्वादशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय संसारताप विनाशनाय चंदनं नि. । तत्त्वज्ञान तरंग की पायी हिलोर । नाच उट्ठा आज मेरा ह्रदय भोर || भव समुद्र अपार को अब पार कर । मुक्ति पाऊंगा स्वरूप विहार कर || ॐ ह्रीं द्वादशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतं नि. । तत्त्वज्ञान तरंग की पायी हिलोर | नाच उट्टा आज मेरा ह्रदय भोर ॥ कामबाण विनाश कर दूंगा सभी ।। प्राप्त पद निष्काम कर लूंगा अभी ॥ ॐ ह्रीं द्वादशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय कामबाण विनाशनाय पुष्पं नि. । तत्त्वज्ञान तरंग की पायी हिलोर । नाच उट्टा आज मेरा ह्रदय भोर | क्षुधा की भव वेदना का नाश कर । सुचरु पाऊँगा स्वरूप प्रकाशकर ॥ ॐ ह्रीं द्वादशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं नि. ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy