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________________ २१६ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी दशम अध्याय पूजन लोकालोक प्रकाशक केवल ज्ञान शक्ति का मैं भंडार बिना कर्म के ऊर्ध्व गमन कर पाऊंगा शिव सुख अविकार ॥ (१५) याता ये यांति यास्यंति भदंता मोक्षमव्ययम् । निमर्मत्वेन ते तस्मान्निर्ममत्वं विचिन्तयेत् ॥१५॥ अर्थ- जो मुनिगण मोक्ष गये, जा रहे हैं, और जायंगे। उनके मोक्ष की प्राप्ति में यह निर्ममत्व ही कारमणहै। इसी की कृपा से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई है। इसलिये मोक्षाभिलाषियों को निर्ममत्व का ही ध्यान करना चाहिये । १५. ॐ ह्रीं अव्ययानन्दस्वरूपाय नमः | अक्षयानन्दोऽहम् | ताटंक जो भी मुनिवर मोक्ष गए जा रहे और अब जाएंगे । उनको मोक्ष प्राप्ति में कारण निर्ममत्व ही ध्यायेंगे || अतः मोक्ष प्राप्ति में कारण निर्ममत्व ही उत्तम ध्यान । इसकी महा कृपा से मिलता आराधक को पद निर्वाण ॥ जो चिद्रूप शुद्ध की महिमा जान उसे ही ध्याता है । पर ममत्व को क्षय करता है महा मोक्ष पद पाता है ॥१५॥ ॐ ह्रीं दशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्यं नि. । (१६) निर्ममत्वे तपोपि स्यादुत्तमं पंचमं व्रतम् । धर्मोऽपि परमस्तस्मन्निर्ममत्वं विचिंतयेत् ||१६|| अर्थ- पर पदार्थो की ममता न रखने से, भले प्रकार निर्ममत्व के पालन करने से, उत्तम तप और पांचवें निष्परिग्रह नामक व्रत का पूर्ण रूप से पालन होता है। सर्वोत्तम धर्म की भी प्राप्ति होती है। इसलिये यह निर्ममत्व ही ध्यान करने योग्य है । १६. ॐ ह्रीं परमानन्तगुणस्वरूपाय नमः । परमज्ञानामृतोऽहम् ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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