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________________ १९ पूजा पीठिका ॐ जय जय जय नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु अरिहंतों को नमस्कार है, सिद्धों को सादर वंदन। आचार्यो कोमस्कार है, उपाध्याय को है वन्दन।।१।। और लोक के सर्वसाधुओं को है विनय सहित वन्दन। पंच परम परमेष्ठी प्रभु को बार-बार मेरा वन्दन।।२।। ॐ ह्रीं श्री अनादि मूलमंत्रेभ्यो नमः पुष्पांजलिं क्षिपामि। मंगल चार, चार हैं उत्तम चार शरण में जाऊं मैं। मन वच काय त्रियोग पूर्वक, शुद्ध भावना भाऊं मैं।।३।। श्री अरिहंत देव मंगल है, श्री सिद्ध प्रभु है मंगल। श्री साधु मुनि मंगल हैं, है केवलि कथित धर्म मंगल।।४।। श्री अरिहंत लोक में उत्तम, सिद्ध लोक में है उत्तम। साधु लोक में उत्तम है, है केवलि कथित धर्म उत्तम।।५।। श्री अरिहंत शरण में जाऊं, सिद्ध शरण में मैं जाऊं। साधु शरण में जाऊं, केवलि कथित धर्मशरणा पाऊ।।६।। ॐ ह्रीं नमो अर्हते स्वाहा पुष्पांजलि क्षिपामि। अर्घ्य जल गंधाक्षत पुष्प सुचरु ले दीप धूप फल अर्घ्य धरूँ। जिन गृह में जिन प्रतिमा सम्मुख सहस्त्रनाम को नमन करूँ॥ ॐ ह्रीं भगवत् जिन, सहस्त्रनामेभ्यो अर्घ्य नि. । जल गंधाक्षत, पुष्प सुचरु ले दीप धूप फल अर्घ धरूँ। . जिन गृह में जिनराज पंच कल्याणक पाँचों नमन करूँ॥ ॐ ह्रीं जिन पंच कल्याणकेभ्यो अर्घ्य ।। जल गंधाक्षत पुष्प सुचरु ले दीप धूप फल अर्घ्य करूँ। तीन लोक के कृत्रिम अकृत्रिम जिन बिम्बों को नमन करूँ॥ ॐ ह्रीं त्रैलोक्य संबंधी कृत्रिम, अकृत्रिम जिनालय जिन बिम्बेभ्यो अर्घ्य । जल गंधाक्षत पुष्प सुचरु ले दीप धूप फल अर्घ करूँ। जिन गृह में सर्वज्ञ दिव्यध्वनि जिनवाणी को नमन करूँ। ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोद्भूत श्रुतज्ञनेभ्यो अर्घ्य | जल गंधाक्षत पुष्प सुचरु ले दीप धूप फलं अर्घ करूँ। जिन गृह में पाँचों परमेष्ठी के चरणों में नमन करूँ॥ ॐ ह्रीं श्री अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्वसाधु पंच परमेष्ठीभ्यो अर्घ्य ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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