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________________ ។។ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान मोक्ष द्वार यदि तुम्हें खोलने का विचार कुछ आया है । तो फिर उसे खोलने का तुमको उपाय बतलाया है ॥ १०. ॐ ह्रीं देहकर्मजनितविक्रियारहितशुद्धचिद्रूपाय नमः । शुचिबोधस्वरूपोऽहम् । आत्मा देह में जो भेद हैं वह भेद बतलाए । देह जड़ कर्म आदिक की विक्रिया सर्व समझाए ॥ उसे ही तो श्री जिनवर भेद विज्ञान कहते हैं । भेद विज्ञान जो करते जगत दुख वे न सहते है ॥ शुद्ध चिद्रूप का विज्ञान अद्भुत अरु अलौकिक है । शुद्ध चिद्रूप के अतिरिक्त जग में सर्व लौकिक है ॥१०॥ ॐ ह्रीं अष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी-जिनागमाय अर्घ्यं नि.. । (११) स्वकीयं शुद्धचिद्रूप भेदज्ञान विना कदा | तपश्रुतवतां मध्ये न प्राप्तं केनचित् क्वचित् ||११|| अर्थ शुद्धचिद्रूप की प्राप्ति बिना भेद विज्ञान के कदापि नहीं हो सकती। इसलिए तपस्वी वा श्रुत ज्ञानी किसी महानुभाव ने बिना विज्ञान के आज तक कहीं भी शुद्धचिद्रूप की प्राप्ति न कर पाई, न कर ही सकता है। जिसने शुद्धचिद्रूप की प्राप्ति की है उसने भेद विज्ञान से ही की हे । ११. ॐ ह्रीं श्रुतवानादिविकल्परहितशुद्धचिद्रूपाय नमः । ब्रह्मतेजस्वरूपोऽहम् । भेद विज्ञान बिन चिद्रूप का मिलना असंभव है । भेद विज्ञान होते ही प्राप्ति निश्चित ही संभव है ॥ आज तक जो हुए हैं शिव भेद विज्ञान द्वारा ही । बिना इसके मूढ़ प्राणी न तज़ते देहकारा ही ॥ शुद्ध चिद्रूप का विज्ञान अद्भुत अरु अलौकिक है । शुद्ध चिद्रूप के अतिरिक्त जग में सर्व लौकिक है ॥११॥ ॐ ह्रीं अष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्यं नि. ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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