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________________ ... १६६ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी अष्टम अध्याय पूजन .. इसके पहिले ही उपशम सम्यक् दर्शन पालेता है । उपशम संहजछूट जाता है अतः भ्रमण कर लेता है || पूजन क्रमाकं ९ तत्त्वज्ञान तरंगिणी अष्टम अध्याय पूजन स्थापना . गीतिका .. तत्त्वज्ञान तरंगिणी अधिकार अष्टम शुद्ध है । भाव जो इसका समझ ले वही जीव प्रबुद्ध है | शुद्ध निज चिद्रूप की ही प्राप्ति करना चाहिए । भेदज्ञान महान का ही ज्ञान करना चाहिए | ॐ ह्रीं अष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं अष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं । ॐ ह्रीं अष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । अष्टक चौपाई दशलक्षण स्व धर्म जल लाऊं। त्रिविध रोग की पीर मिटाऊं। परम शुद्ध चिद्रूप निहारूं। ज्ञान भावना उर में धारूं || । ॐ ह्रीं अष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि । दशलक्षण स्वधर्म चंदन ला। भव ज्वर नाशुं शुद्ध भावं पा। परम शुद्ध चिद्रूप निहारूं। ज्ञान भावना उर में धारूं || . -
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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