SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४४ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी षष्टम अध्याय पूजन जो निश्चय भूतार्थ त्याग व्यवहार मध्य वर्तन करते । वे स्वभाव का निषेध करते कभी नहीं भव दुख हरते ॥ | १९. ॐ ह्रीं संशयरहितचिद्रूपाय नमः । निःशङ्कस्वरूपोऽहम् । वीरछंद जो भी मोक्ष गए हैं अथवा आज जा रहे हैं मुनिराज । आगे भी जो मोक्ष जाएंगे सिद्ध करेंगे अपना काज || सबने ही निश्चल हो अपने चिद्रपी को ही ध्याया । पहिले भी ध्याया था आगे भी ध्या कर शिव सुख पाया। मैं ही तो चिद्रूप शुद्ध हूं उत्तम लक्ष्य मोक्ष का धाम । इसको ही पाना है मुझको इसमें करना है विश्राम ॥१९॥ . ॐ ह्रीं षष्टम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. । (२०) निश्चलोंऽगी यदा शुद्धचिद्रूपोऽहमिति स्मृतौ । तदैव भावमुक्तिः स्यात्क्रमेण द्रव्यमुक्तिभाग् ॥२०॥ अर्थ- जिस समय निश्चल मन से यह स्मरण किया जाता है कि मैं शुद्धचिद्रूप हूं भाव मोक्ष उसी समय हो जाता है। और द्रव्य मोक्ष क्रम क्रम से होता चला जाता है। २०. ॐ ह्रीं द्रव्यभावमुक्तिविकल्परहितशुद्धचिद्रूपाय नमः । स्वयंप्रभस्वरूपोऽहम् । जिस क्षण निश्चल मन से सुमिरण करता परम शुद्ध चिद्रूप । भाव मोक्ष तत्क्षण ही होता द्रव्य मोक्ष भी हो अनुरूप || अतः शुद्ध चिद्रूप ध्यान ही एकमात्र करने के योग्य । मैं हूं परम शुद्धचिद्रूपी यही योग्य बस शेष अयोग्य || मैं ही तो चिद्रूप शुद्ध हूं उत्तम लक्ष्य मोक्ष का धाम । इसको ही पाना है मुझको इसमें करना है विश्राम ॥२०॥ ॐ ह्रीं भट्टारकज्ञानभूषणविरचिततत्त्वज्ञानतरंगिण्यां शुद्धचिद्रूपस्मरणनिश्चलताप्रतिपादक | षष्ठाध्याये अचलज्ञानस्वरूपाय पूर्णाऱ्या निर्वपामोति स्वाहा ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy