SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी षष्टम अध्याय पूजन रागादि भाव हिंसा है यह जिन वच कभी न माना । हरबार द्रव्य हिंसा को ही हिंसा मैंने माना ॥ पूजन क्रमांक ७ तत्त्वज्ञान तरंगिणी षष्टम अध्याय पूजन स्थापना गीतिका तत्त्व ज्ञान तरंगिणी अधिकार षष्टम है महान । चिद्रूप शुद्ध स्मरण से निर्मल बनो हो सावधान ॥ धर्म ध्यान महान हो उर में न कोई दंभ हो । शुक्ल ध्यान महान का भी फिर प्रभो आरंभ हो | ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं । ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । अष्टक छंद चौपई आँचली बद्ध निज निर्मल जल लाऊ नाथ जन्म मरण का तज दूँ साथ। परम गुरु हो जय जय नाथ परम गुरु हो || एक शुद्ध चिद्रूप महान करूं आत्मा का कल्याण । महासुख होय पूजे नाथ परम सुख होय ॥ ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy