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________________ १११ ... श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान आत्मा है दर्शन ज्ञानमयी उसको ही आत्मा ग्रहता है । पर द्रव्यों के प्रति राग भाव उसको ये पूरा तजता है || पूजन क्रमाकं ६ तत्त्वज्ञान तरंगिणी पंचम अध्याय पूजन स्थापना छंद गीतिका तत्त्वज्ञान तरंगिणी अधिकार पंचम जानकर । प्राप्ति उसकी सहज होती उसे ही पहचान कर ॥ शुद्ध निज चिद्रूप को ही प्रतिसमय निरखा करूं । नय तथा निक्षेप और प्रमाण से परखा करूं ॥ ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थपानं । ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । अष्टक छंद सखी जल ज्ञानानन्दी लाऊं। त्रय व्याधि सकल विनशाऊं । चिद्रूप शुद्ध निज ध्याऊं। परमोत्तम शिव पद पाऊं ॥ ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि. । ज्ञानानन्दी निज चंदन। हरता भव ज्वर का क्रन्दन । चिद्रूप शुद्ध निज ध्याऊं। परमोत्तम शिव पद पाऊं || ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय संसातरताप विनाशनाय चंदनं नि ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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