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________________ पृष्ठभूमि क्षायिक और सम्यग्दृष्टि के क्षायोपशमिक भावों को निर्मल परिणमन कहा गया है। उक्त भावों रूप परिणमित होना ही शक्तियों का उछलना है। इसप्रकार यह सुनिश्चित हुआ कि शक्तियाँ मूलतः तो पारिणामिकभाव रूप ही हैं, पर उनका परिणमन ज्ञानियों के औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिकभावरूप है। यहाँ एक प्रश्न संभव है कि जब निर्मल परिणमन को उछलती हुई शक्तियों में शामिल कर लिया तो फिर विकारी परिणमन को भी शामिल कर लेना चाहिए; क्योंकि वह विकारी परिणमन भी तो आखिर उसी का है और ज्ञानियों के भी होता ही है। यद्यपि विकारी परिणमन भी उसी का है और वह ज्ञानियों के भी होता है; तथापि वह शक्तिरूप नहीं, कमजोरीरूप है । क्या कमजोरी को भी शक्तियों में शामिल किया जा सकता है ? यद्यपि अज्ञानियों को भूल से और ज्ञानियों को कमजोरी के कारण रागादि पाये जाते हैं; तथापि उन्हें उछलना तो नहीं कहा जा सकता, उल्लसित होना तो नहीं कहा जा सकता । यही कारण है कि विकारी परिणमन को उछलती हुई शक्तियों में शामिल नहीं किया गया है। तीसरी बात यह है कि इन शक्तियों में परस्पर प्रदेशभेद नहीं होने पर भी भावभेद है, लक्षणभेद है। यद्यपि एक शक्ति दूसरी शक्तिरूप नहीं है; तथापि एक शक्ति में दूसरी शक्ति का रूप अवश्य है; जिसके कारण वे सभी शक्तियाँ परस्परानुबिद्ध हैं। प्रश्न : 'एक शक्ति दूसरी शक्तिरूप नहीं है; फिर भी एक शक्ति का रूप दूसरी शक्तियों में है'- इसका भाव ख्याल में नहीं आया। इसे जरा विस्तार से स्पष्ट कीजिए ।
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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