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________________ मङ्गल कामना सुप्रसिद्ध दिगम्बर जैनाचार्य श्री कुन्दकुन्ददेव के सुप्रसिद्ध पंच परमागम ग्रंथ श्री समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, अष्टपाहुड़ एवं पञ्चास्तिकाय में मानों आचार्यदेव ने जिनागम का रहस्य भर दिया है तथा वीतरागता के ही पोषक चारों अनुयोगों के और भी अनेक ग्रन्थ श्री योगसार, परमात्म प्रकाश, इष्टोपदेश, समाधितन्त्र, तत्त्वानुशासन, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ज्ञानार्णव, भगवती आराधना, पद्मनन्दि पंचविंशति, कार्तिकेयानुप्रेक्षा, तत्त्वसार, रयणसार, वृहद् द्रव्य संग्रह, पञ्चाध्यायी पुरुषार्थसिद्धियुपाय, आत्मानुशासन, अमृताशीति, गोम्मटसार आदि चालीस जिनागम ग्रन्थों का युवारत्न विद्वान पं. राजकुमारजी शास्त्री गुना ने दस वर्ष तक गहन अध्ययन पूर्वक जो सुन्दर संकलन किया है वह अद्भुत एवं बारम्बार पठन- चिन्तन-मनन एवं अनुभवन योग्य है। पं. राजकुमारजी स्वयं ही अति आत्मार्थी / गहन स्वाध्यायी एवं तत्त्व रसिक है जिनके द्वारा गुना में जयस्तंभ चौराहे पर जैन मंदिर गली में स्थित श्री महावीर जिनालय के विशाल हॉल में प्रतिदिन प्रात: 9 बजे से 10 बजे तक आध्यात्मिक/ मार्मिक एवं प्रभावक शैली में ओजस्वी व्याख्यान इन्हीं जिनागम ग्रन्थों पर चलते हैं, जिसका दो सौ से भी अधिक साधर्मीजन प्रतिदिन धर्मलाभ लेकर अपने को कृतकृत्य / धन्य-धन्य अनुभव करते हैं। प्रस्तुत चालीस ग्रंथों की सारभूत यह आध्यात्मिक कृति 'जिनागम 'के अनमोल रत्न' उनके माध्यम से हमें सहज ही प्राप्त होकर प्रकाशित हो गई है...उन्होंने स्पष्ट कहा कि इसमें एक भी शब्द मेरा नहीं है यह तो दिगम्बर जैनाचार्यों द्वारा आत्मानुभव की कलम से लिखा गया अमृत है जो पान करेगा वह अमरता को प्राप्त हो जायेगा । मैंने तो 'स्वान्तः सुखाय' इन रत्नों का संकलन किया है। सभी स्वाध्यायी / आत्मार्थीजन भी इन जिनागम रत्नों को पाकर अपने अनंतगुण रूपी चैतन्य रत्नाकर को प्राप्त कर पर्याय में भी अनंत वैभव सम्पन्न बने, इसी भावना के साथ । दशलक्षण महापर्व - वाणीभूषण पं. ज्ञानचन्द जैन, सोनागिर अनंत चतुर्दशी 22 सितम्बर 2010
SR No.007161
Book TitleJinagam Ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumar Jain, Mukesh Shastri
PublisherKundkund Sahtiya Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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