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________________ 164] [जिनागम के अनमोल रत्न (30) श्री मन्दालसा स्तोत्र माता मन्दालसा अपने पुत्रों को जन्म से ही आत्मकल्याण के संस्कार डालती हुई कहती है कि हे पुत्र! तू.... सिद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरंजनोऽसि, संसारमाया-परिवर्जितोऽसि। शरीरभिन्नस्त्यज सर्वचेष्टां, मन्दालसावाक्यमुपास्स्व पुत्र ।।1।। हे पुत्र! आठ कर्मों का नाश करने से तू सिद्ध है, ज्ञानस्वरूप होने से तू बुद्ध है, तू अंजन रहित है, तथा संसार माया से तू पर है। तू देह से भिन्न है, अर्थात् तेरा स्वरूप चैतन्यरूप है, इसलिये देहाश्रित सर्व क्रियाओं को तू छोड़। तेरी माता मन्दालसा के ये वचन हे पुत्र! तू ग्रहण कर हृदय में उतार। ज्ञाताऽसि दष्टासि परात्मरूपो, अखंडरूपोऽसि गुणालयोऽसि। जितेन्द्रियस्त्वं त्यज मानमुद्रां, मन्दालसावाक्यमुपास्स्व पुत्र ।।2।। हे पुत्र! तू अखण्ड ज्ञानस्वरूप होने से ज्ञाता है, तू अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष रूप है, परमात्मा का जो अनंत स्वरूप ये ही तू है। तू अखण्ड है-खण्ड-खण्ड ज्ञान वह तेरा स्वरूप नहीं, तू गुणों का भण्डार है, तू गुणों का आश्रय स्थान है, तू पाँचों इन्द्रियों को जीतने वाला ऐसा जितेन्द्रिय है; पर में अहंबुद्धि रूप-मान का त्याग कर तू तेरी माता मन्दालसा के ये हितकर वचन हे पुत्र! तू ध्यान में ले स्वीकार कर। शान्तोऽसिदान्तोऽसि विनाशहीनः सिद्धस्वरूपोऽसि कलंकमुक्तः। ज्योतिः स्वरूपोऽसि विमुञ्च मायांमन्दालसावाक्यमुपास्स्व पुत्र ।।।। हे पुत्र! सर्व कषायों से रहित ऐसा तू वीतराग स्वरूप शान्त है, पंचेन्द्रिय विषयों के दमन करने वाला तू दान्त है, विनाशरहित अविनाशी है, तू मृत्यु से पर है, स्वरूप से तू सिद्ध जैसा परमात्मस्वरूप है, तू कलंकरहित ऐसा निष्कलंक है-शुद्ध निर्मल तेरा स्वरूप है, तू ज्ञानज्योतिर्मय है। हे पुत्र! तू मायाजाल रूपी विकल्पों को छोड़ा तेरी माता मन्दालसा तुझे यह जो बोध करती है ऐसा तू प्रसिद्ध बन।
SR No.007161
Book TitleJinagam Ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumar Jain, Mukesh Shastri
PublisherKundkund Sahtiya Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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