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________________ समाधितन्त्र सकल विभाव अभावकर, किया आत्मकल्यान । परमानन्द-सुबोधमय, नमूँ सिद्ध भगवान ॥ १ ॥ आत्मसिद्धि के मार्ग का, जिसमें सुभग विधान । उस समाधियुत तन्त्र का, करूँ सुगम व्याख्यान ॥ २ ॥ नमूँ सिद्ध परमात्म को, अक्षय बोध स्वरूप । -जिन ने आत्मा आत्ममय पर जाना पररूप ॥ १ बिन अक्षर इच्छा वचन, सुखद जगत् विख्यात । धारक ब्रह्मा विष्णु बुध, शिव जिन सो ही आप्त ॥ २ ॥ चहें अतीन्द्रिय सुख उन्हें श्रुत अनुभव अनुमान से आत्मा शुद्ध स्वरूप । कहूँ शक्ति अनुरूप ॥ ३ ॥ त्रिविधरूप सब आतमा, बहिरात्मा पद छेद । अन्तरात्मा होयकर, परमात्म पद वेद ॥ ४ ॥ बहिरात भ्रम वश गिने, आत्मा तन इक रूप । अन्तरात्म मल शोधता, परमात्मा मल मुक्त ॥ ५ ॥ शुद्ध, स्पर्श-मल बिन प्रभू, अव्यय अज परमात्म। ईश्वर निज उत्कृष्ट वह, परमेष्ठी परमात्म ॥ ६ ॥ आत्म ज्ञान से हो विमुख, इन्द्रिय से बहिरात्म | आत्मा को तनमय समझ, तन ही गिने निजात्म ॥ ७ ॥
SR No.007156
Book TitleAdhyatma Tri Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year2010
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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