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________________ अपनी बात वीतराग अर्हन्त, सर्वज्ञ प्रणीत जिनागम अनेकान्तमय है और स्याद्वाद शैली में निबद्ध है। जहाँ कहीं भी तत्त्वों का विवेचन होता है, उसका मुख्य आधार अनेकान्त, स्याद्वादमय जिनागम ही होता है । अनेकान्त और स्याद्वाद को हम प्रमाण मात्र से समझ सकते हैं, जो प्रमाण है, वह केवल ज्ञानमय है प्रमाण ही सम्यग्ज्ञान है, शेष ज्ञान मिथ्या हैं । प्रमाण ज्ञान के स्वरूप एवं भेदों का वर्णन करने वाले शताधिक ग्रन्थ हैं, पर वे सभी दुरुह एवं दुर्लभ हैं, कई ग्रन्थ तो अप्राप्य हैं, जो प्राप्य हैं, उन्हें समझना सभी के क्षयोपशम के वश में नहीं है, परन्तु हम अल्पज्ञों के सातिशय पुण्योदय से परम पूज्य आचार्य माणिक्यनंदीजी ने अपनी प्रज्ञा से परीक्षामुख नामक ग्रन्थ की रचना करके मात्र 208 सूत्रों में गागर में सागर भर दिया है। सर्वप्रथम उन्हीं को त्रियोग से नमोस्तु करते हैं। इसके बाद इस सूत्र ग्रन्थ का अनुवाद पं. मोहन लालजी शास्त्री जबलपुर ने किया है । परन्तु सुव्यवस्थित न होने से पढ़ने में सरलता नहीं थी, फिर भी हम बहुत आभारी हैं, जिन्होंने यह श्रमसाध्य कार्य किया । मेरा जीवन वैराग्य पथ पर बढ़ा और पूज्य गुरुवर श्री 108 सरलसागरजी का चरण सान्निध्य मिला, उन्हीं के चरणों में रहकर न्याय - व्याकरण का अध्ययन किया। उन्हीं की आशीष छाया में मेरी बुद्धि कुछ समझने लायक बनी एतदर्थ उनकें पावन चरण कमलों में शत-शत बार नमोस्तु । कर्मोदयवशात् पृथक् विहार का अवसर आया और चंचल मन को स्थिर करने के लिए स्वाध्याय ही अमोघ साधन था, उसी स्वाध्याय और पठन-पाठन की रुचि के परिणाम स्वरूप परीक्षामुख ग्रन्थ के अनुवाद की अन्तस् प्रेरणा मिली और कलम चल पड़ी। क्षयोपशम ज्ञान से जो कुछ किया वह सब लगन और पुरुषार्थ का ही फल है। प्रस्तुत अनुवाद को सर्वप्रथम अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी, आध्यात्मिक श्रमण परम पूज्य मुनि श्री 108 प्रमाणसागरजी ने अवलोकन किया और मुझे आशीर्वाद और प्रेरणा दी कि इसे शीघ्र प्रकाशित होना चाहिए । 7
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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