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________________ प्रकाशकीय अनेकान्त ग्रन्थमाला के नवम् पुष्प के रूप में न्याय ग्रन्थ परीक्षामुख के तृतीय संस्करण का प्रकाशन करते हुए अत्यन्त हर्ष का अनुभव कर रहे हैं। इसका प्रथम संस्करण वर्ष 2003 में प्रकाशित किया गया था। ग्रन्थ प्रकाशन के बाद अनेक मुनि संघों में एवं स्वाध्याय गोष्ठियों में परीक्षामुख ग्रन्थ का अत्यन्त लगन पूर्वक स्वाध्याय किया गया। पिछले वर्ष से ही ग्रन्थ की प्रतियाँ अलभ्य हो चुकी थीं और अध्येताओं की माँग निरन्तर बनी हुई थी। अतः इसका संशोधित तृतीय संस्करण न्याय विद्या के जिज्ञासुओं की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। ‘परीक्षामुख' जैन न्याय के अभ्यासियों के लिए उपयोगी रचना है। इस लघुकृति में आचार्य माणिक्यनंदी जी ने जैन न्याय के समस्त विषयों को गर्भित कर लिया है। परीक्षामुख के सूत्रों की तथा संस्कृत टीका की सरल व्याख्या के साथ सरल प्रश्नोत्तरी तैयार करके श्रद्धेय क्षु. 105 विवेकानंदसागर जी महाराज ने इसको और भी सरल बना दिया है। इस कारण यह रचना जन सामान्य के लिए उपयोगी बन गई है। पूज्य मुनि श्री 108 ब्रह्मानंदसागरजी महाराज की भावनानुसार ग्रन्थों का विक्रय नहीं होना चाहिए। ग्रन्थ तो ज्ञान के साधन हैं, अतः जिनवाणी की प्रभावना हेतु प्रचार-प्रसार ही होना चाहिए। अभी तक के समस्त प्रकाशनों में हम इसी नीति का अनुसरण करते आए हैं और भविष्य के लिए पुरुषार्थरत हैं। ग्रन्थ प्रकाशन का यह पुनीत कार्य अर्थ साध्य भी है, दान दातारों की उदारता के बिना यह सम्भव नहीं है। अतः इस क्षेत्र (ज्ञानदान) में समाज का हर वर्ग अपनी उदारता का परिचय उसी प्रकार दिखाये, जिस प्रकार की पंचकल्याणक, पूजन-विधान आदि के अवसर पर दिखाता है। धर्म प्रभावना के नाम पर आगम ग्रन्थों का प्रकाशन, पठन-पाठन आदि का कार्य भी बृहद् स्तर पर होना चाहिए। संस्थान की ओर से सर्वप्रथम श्रद्धेय क्षुल्लकजी को सादर इच्छामि
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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