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________________ प्रकार से सिद्धि होती है और प्रमाणाभास से ( मिथ्याज्ञान से) इष्ट अर्थ की सिद्धि नहीं होती। इसलिए मैं प्रमाण और प्रमाणाभास का पूर्वाचार्य प्रसिद्ध एवं पूर्वापर दोष से रहित संक्षिप्त लक्षण को लघुजनों (मंद बुद्धिवालों) के हितार्थ कहूँगा । 1. परीक्षामुख ग्रन्थ के लेखक कौन हैं ? 2. 3. परीक्षामुख किस अनुयोग का ग्रन्थ है ? परीक्षामुख द्रव्यानुयोग का ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ का नाम परीक्षामुख क्यों है ? परीक्षानाम वस्तु स्वरूप के विचार करने का है। विवक्षित वस्तु का स्वरूप इस प्रकार है या नहीं अथवा अन्य प्रकार है । इस प्रकार है । इस प्रकार से निर्णय करने को परीक्षा कहते है । इस ग्रन्थ में प्रमाण के स्वरूप की परीक्षा की गई है और इसके द्वारा ही समस्त वस्तुओं की परीक्षा की जाती है, इसलिए इस ग्रन्थ का नाम परीक्षामुख रखा गया है। यह ग्रन्थ किस उद्देश्य से लिखा गया है ? अव्युत्पन्न लोग न्यायरूप समुद्र में सरलता पूर्वक अवगाहन कर सकें इसी उद्देश्य से यह ग्रन्थ लिखा गया है। मंगलाचरण में इष्टदेव को नमस्कार क्यों नहीं किया ? 4. 5. परीक्षामुख ग्रन्थ के लेखक आचार्य माणिक्यनन्दि जी हैं । इस ग्रन्थ में किसका कथन है ? इस ग्रन्थ में प्रमाण और प्रमाणाभास के लक्षणों का कथन है । 6. ऐसी शंका नहीं करना चाहिए क्योंकि इष्टदेवता को नमस्कार मन और काया से भी किया जाना संभव है। संभव है वचन निबद्ध न करके मन से कर लिया हो। अथवा काय से साष्टांग नमस्कार कर लिया हो । अथवा प्रमाण शब्द का अर्थ अरहंत परमेष्ठी भी होता है । मा - अन्तरंग और बहिरंगलक्ष्मी, आण शब्द - दिव्यध्वनि, प्र उत्कृष्ट । मा च आण च = 16
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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